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________________ २५.०३] हिन्दी अनुवाद १३३ राजा बोला- "हे कुमार, धुरी उठानेमें धीर तुम धरतीका भार उठाओ। मैं सैकड़ों पापोंको पानेवाली तपको आगसे कलियुगके पापके कलंकको शोषित करता है। तुम कुल-परम्परके भारको अपना कन्धा दो।" तब वह कामध्यजी पुन जानर देता है. मैं श्री .परमादरके साप इसको नष्ट करता है उसी प्रकार, जिस प्रकार बालसूर्य के द्वारा अन्धकारसमूह नष्ट कर दिया जाता है। हे विश्वके एकमात्र सम्राट, आपके द्वारा भोगी गयी भूमि और परतीका उपभोग में कैसे करूंगा। आपके चरणकमलकी धूलका भ्रमर, कर शत्रुरूपी लक्ष्मी के लिए व्याघ्र, मैं | जिस प्रकार लक्ष्मोषर है उसी प्रकार पुण्डरीक है। इसलिए अपने पुण्डरीकको आसन दे दीजिए। वह पुण्डरीक मेरा पुत्र है । हम-तुम दोनों ही साघुत्वको प्राप्त हों।" यह सुनकर राजाने भो अपनी स्वीकृति दे दी। पत्ता-तब चन्द्रमाके समान कोमल, जयमें हर्ष मनानेवाले बालकको राजाने राज्यमें प्रतिश्चित कर दिया ( और कहा ) कि नरश्रेष्ठोंके द्वारा प्रणम्य हे राजन्, पुत्र-पुत्र! तुम प्रजाका पालन करना ।।६।। मत्त महागजोंको छोड़ देनेवाले, चंचल हिनहिनाते घोड़ोंको छोड़ देनेवाले, स्वर्णरथोंको छोर देनेवाले, श्रेष्ठ योताओं और पुत्रों को छोड़ देतेवाले, बहुत-से देशान्तर छोड़ देनेवाले, विशाल अन्तःपुर छोड़ देनेवाले, समस्त धरतीको छोड़ देनेवाले, चक्रवर्ती देव वज्रदन्तने यशोधरके शिष्य गणपरके पास गिरिकुहरके घर जाकर दीक्षा ले ली, उस अमिततेजके साथ कि जिसने दी जाती हुई पृथ्वीको भी नहीं चाहा। अपने मुखोंसे जिनवरको स्तुतियोंका उच्चारण करनेवाले एक इबार पुत्रोंने यत लिये और मुनिमार्गको जाननेवाले साठ हजार राजा भी प्रयजित हए । और भो दूसरे-दूसरे बीस हजार राजाओंने केशलोंच कर दीक्षा ग्रहण कर ली। इस प्रकार जैसे ही राजाने संन्यास लिया कि वह विलासिनी ( अनुन्धरा ) वहाँ पहुंची। __ पत्ता-वह पण्डित पापोंका हरण करनेवाला अपने योग्य तपश्चरण लेकर स्थित है। पान्तिसे भग्न और कामवश होते हुए उसने अपना मन वशमें कर लिया ॥७॥ विरागी राजाने अपना मानस रोक लिया। अपना वास, अपने आभूषण और अपने वक्ष
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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