SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी अनुवाद १२ अपने प्रियके लिए सुन्दर, सम्पूर्ण काम, मुक्त और सतुष्ट माताने कर्मोंका क्षय करनेवाले जिननाथको पूजा की और धूप दी। पवित्र स्वर्ण घटों, सघन निर्मित खम्भों, रजतनिर्मित दीवालों, अलिखित भांडों, चमकते हुए रश्नों तथा श्रेष्ठ हीरोंसे सघन आसन से शोभित वेदियों और कान्तिसे अलंकृत शत्रुओं की खोंको आच्छादित करनेवाला, चमकते हुए मोतियोंके समान अपने दांतोंकी पंक्तिसे जो हँसता हुआ जान पड़ता है और दृष्टिसुख देता है। नाना परकोटों, नाना द्वारोंसे युक्त इतना बड़ा मण्डप बनाया गया कि जहाँ तक सम्भव है उसमें जनसमूह समा सके । एकत्रित सुधीजनों, निबद्ध तोरणों, मेध्वतिके समान गम्भीर बजते हुए तूप, नृत्य करती हुई तरुणियों, nusarer गृहिणियों, विद्याधरियों, यक्षिणियों, नागरवनिताओं, हिमहारके समान जलमय कलशों और पतिपुत्रों वाली राजमहिषियोंके द्वारा सौभाग्य से सुन्दर वधूवरको स्नान करवाया गया। उनका नवति रससे अत्यन्त परिपूर्ण प्रसाधन किया गया। पास-पास बैठे हुए उनके स्तुति शब्दों की कलकल ध्वनिसे पूर्ण धवल मंगल गीतोंके साथ बार-बार गीत गाये गये । २४. १३.५ ] ·· १२३ धत्ता - जो मदसे परिपूर्ण है, तथा जिसके हाथ फैले हुए हैं ऐसी प्रियाका कामसे विदारित मन उसने मुखपटको हटा दिया मानो वरसुभटने गजघटाका मुखपट हटा दिया हो ॥ १२ ॥ १३ जिसमें उग्र दुर्भाग्य और दुःखावलीका अन्य हो गया है ऐसी शुभ लग्नवाले सुन्दर दिन, उसने उस खीके हाथको अपने हाथ में ले लिया और उसकी असह्य कामपोड़ाको शान्त कर दिया । राजराजेश्वर ने भिंगारसे लाये गये पानीकों भानजेके हाथपर डाल दिया ( और कहा ), दूसरे जन्मकी तुम्हारी कोमल आलाप करनेवाली पत्नी मैंने तुम्हें प्रदान कर दी। राजाने वायु
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy