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________________ सन्धि २४ पुत्र और परिजनोंके साथ वह मुझे लोवन सुख देगा। हे पुत्री । सुनो, तुम्हारा राजा ? मुगुर पाच बायेगा । ..........: ... .... :.. सुम अपना मुखकमल मलिन मत करो। हे पुत्री, आज सुन्दर सवेरा हुआ है। आज मैं बाये हुए विनयशील अतिथि वस्त्रबाहके लिए करणीय करूंगा। तुम शोकके फ्लेशरूपी पंकको यो बालो। हे पुत्री, तुम आज अपने पतिको देखो। वे माननीय आये हैं, मैं उन्हें मानता हूँ और शोघ्र भाषे मार्ग तक जाकर उन्हें घर लाता हूँ। मैं जाता हूँ, यह कहकर जैसे ही राजा गया है, वैसे हो पण्डिता भवनपर पहुंची। उसने मुनियों को भी कामकी उत्कण्ठा उत्पन्न करनेवाली राजाकी कन्याको देखा । ( वह उससे इस प्रकार मिली) जैसे यमुना नदी गंगा नदीसे या श्रुत परम्परा कषिकी मतिसे मिली हो। चंचल आँखोंवाली उसके पास वह इस प्रकार बैठी जेसे लक्ष्मीके पास पुरुषकी उद्यम लीला हो । हपिनीके द्वारा हथिनीसे जिस प्रकार कर ( ) मांगी जाती है, उसने हाथ मांगा, जैसे एक लता दूसरी लताका आलिंगन करती है, उसी प्रकार एकने दूसरीका आलिंगन किया। मस्तकमें चूमकर सामने बैठाया। जैसे कलहंसी कलहंसीसे बात करती है उस प्रकार उसने सम्भाषण किया। मुंहके रागसे कहा गया उसने सब देख लिया, फिर भी राजकन्याने कार्यके बारेमें पूछा। पत्ता-उस पण्डिताने कहा कि तुमने जो चित्रपट चुपचाप लिखकर दिया था मैं उसे वहाँ ले गयी कि जहाँ दमित वासव दुर्दान्त आदि हटकर रह गये ॥१॥ जो वर सबसे बादमें आया वह मानो सौभाग्यका घर था। वह मानो कामदेवके द्वारा प्रेषित तौर है, वह मानो प्रेमरसके जलका समुद्र है। युवतीजनोंके प्राणोंका अपहरण करनेवाला
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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