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________________ AO २३. ४.८] हिन्दी अनुषाव सूर्यको निस्तेज करता हुआ अपने गजवरको प्रेरित कर राजा आ गया। उसने पुरमें प्रवेश किया और अपने घर आया। मधुर आलाप और प्रणयभावसे उसने चिरसन्तप्त अपनी कन्यासे कहा"हे पुत्रो ! तुम शोक मत करो, लो स्वीकार करो, स्नान-विलेपन-कंगन और परिधान । गुरुजनोंको रंजित करो, भोजन करो, वाद्य बजाओ, नावो-गाओ, अक्षर पढ़ो, पक्षियोंको पढ़ाओ, तुम्हारा मुख तीनों लोकोंमें भला है, यदि मैं उसे नहीं देखता तो में जीवित नहीं रहेगा।" तब, पिताके कथनको कुमारीने मान लिया। वह फिर आकर और प्रणाम कर बैठ गयो । विरहसे दुःखी पास बैठो हुई उसका आलिंगन कर और सिर चूमकर, नेत्रोंको आनन्द देनेवाले राजाने कहा-"मैं एक अत्यन्त पुराना सुन्दर कथानक कहता है। हे कामदेवको लक्ष्मो कृशोदरी, तुम सुनो। धत्ता-पहले यहाँ पुण्डरोकिणो नगरमें, इस जन्मसे पूर्व पांचवें जन्ममें, मैं नित्योत्सववाले कुलमें अर्धचक्रवर्तीका पुत्र हुआ था ॥३॥ चन्द्रकीति नामसे, सुमित्रवर जपकीर्तिसे विभूषित । पिताको मृत्यु होनेपर, मैं चिरकाल तक, भूमि और लक्ष्मीसे मालिंगित रहा । अनुपम शुभ रातोंसे हर्षित मनवाले हम दोनोंने बहुत समय तक राज्यका भोग किया। अन्त समय हम दोनों लक्ष्मीको छोड़कर प्रीतिवर्धन वनमें प्रवेश कर, जिसने चन्द्रसेन गुरुके चरणोंकी सेवा की है ऐसे उद्गतकुरुके निर्जन वनमें तप किया। दोनोंने पापबुद्धिका निवारण किया और शायद साथ ही समयकी गति पूरी की। दोनों ही माहेन्द्र स्वर्गमें देव हुए, सात सागर प्रमाण आयुवाले। देवोंके द्वारा स्तुत वहाँ बहुत समय तक
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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