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________________ २२. १९.१२] हिन्दी अनुवाद १८ ७७ मुनिको अपने शरीर के प्रति त्यागभाव देखकर तुम्हारे मनमें दयाभाव उत्पन्न हुआ । तुमने उस कुत्ते के शरीरको वहाँ फेंक दिया, जहाँ वह आंखोसे दिखाई न दे। प्रणाम करके तुमने योगी से क्षमा मांगी। उन्होंने भी क्षमाभाव दे दिया करमरकर अशुभसे पूर्ण यहाँ इस नीच कुल में उत्पन्न हुई । पापका दुःख धर्मसे हो जा सकता है. सुख के कारण पवित्र धर्मको सुनो। संसार में सपिके पैरोंको कौन जानता है ? परमार्थ रूपसे धर्मको कोन जानता है ? लौकिक धर्म होता है जलमें स्नान करनेसे, वीर पुरुषोंके युद्धोंका वर्णन करनेसे, धर्म होता है बार-बार बाचमन करनेसे पहाड़के ऊपर पत्थरको स्थापना करनेसे । धर्म होता है धीमें अपना मुँह देखनेसे । धर्म होता है गायका शरीर छूने से धर्म होता है तिल और पायस भोजन करनेसे | धर्म होता है पीपल वृक्षका आलिंगन करनेसे धर्म होता है गोमूत्र पीनेसे । धर्म होता है मधु और मयके रसास्वादन से धर्मं होता है मांसका वेधन करनेसे धर्म होता है बकरा, मुर्गा और सुअरको मारनेसे । 1 धत्ता - हे पुत्री, यह कुलिंग और कुधर्म है, इससे केवल नरक गतिमें जाया जा सकता है। इसलिए जिननाथ के द्वारा प्रकाशित अहिंसा लक्षण धर्मका आचरण करना चाहिए ||१८|| १९ मेखला कृष्णाइन (काले मृगका चमड़ा ) और दर्भाकुर धारण करनेके लिए लोग मृगों की क्यों मारते हैं ? मुनियोंके समूह के चिह्नसे क्या, जबकि यदि वह निश्य ही क्रोधसे मुक्त नहीं होता । जिसका अन्तरंग शुद्ध दिखाई नहीं देता शरीरक्लेश से उसका क्या होगा ? मुनिको विधि करनेवाला स्वयंको दण्डित करे उसका भवसंसार वहीं स्थित है ? उपशमसे पूर्ण और अणुव्रतधारियों से झूठ मत बोलो, जीवको मत मारो, करपल्लव में दूसरेके धनको मत ढोओ। परपुरुषको रागदृष्टिसे मत देख, बहुलोभको उत्पन्न करनेवाले संगको छोड़ दे, रात्रिभोजन दुःखका कारण है, और भी पर्व के उपवासका पालन करो, जिनप्रतिमाओंके प्रतिदिन दर्शन करो, अपनी शक्तिसे अभिषेक और पूजा कर उन्हें भारी भक्ति के साथ प्रणाम करो । उपशान्तको भी तुष प्रास दो । नियमसे अपने मनका नियमन करो । पत्ता - हे बाले, यदि तू शुक्ल पंचमियों में १५० उपवास करती है तो श्रुतधारी उन मुनिपर तूने जो किया है, वह तेरा चिरपाप नष्ट हो जाता है ||१९|| REA
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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