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________________ सुवृत्ततिलक में महाकवि क्षेमेन्द्र ने कहा है कि काश्य में, कश के विस्तार में और सामासापूर्ण उपक्ष में जहष अनुप की प्रभार करते है। शृंगाररस के आलम्बन, तथा उत्कृष्ट नायिका के रूप-वर्णन में वसन्ततिलका और उपजाति छन्द सुशोभित होते हैं। चन्ट्रोदय आदि विभाष भावों के वर्णन में रथोद्धता छन्द अच्छा माना जाता है। तथा सन्धि, विग्रह भावि षड्गुणात्मक नीति का उपदेश वंशस्थ छन्द से सुशोभित होता है। वीर और रोदरस के संकर में वसन्ततिलक सुशोभित होता है सो सन्ति में मालिनी अधिक हिलती है। युक्तियुक्त वस्तु के परिज्ञान-काल में, शिखरिणी तथा उदारता आदि के औचित्यवर्षन में हरिणी छन्द की मोजना अच्छी मानी जाती है। राजाओं के शौर्य की स्तुति करने में शार्दूलविक्रीडित और वेगशाली वायु आदि के वर्णन में स्रग्धरा छन्द श्रेष्ठ माना गया है। दोधक, तोटक तथा नकूट छन्द मुक्तक रूप से सुशोभित होते हैं। ___ इस प्रसिद्ध छन्दो-योजना के अनुसार धर्मशर्माभ्युदय में निम्नांकित २५ छन्दों का प्रयोग हुआ है-जिनका विवरण निम्न प्रकार है। कोष्ठक का अंक सर्ग का और साधारण अंक श्लोक का वाचक हैं । कोष्ठक के भीतर लिखा हुआ 'प्र' प्रशस्ति का वाचक है१. उपजाति-(१) १-८४, (४) २-९१, (१०) १-९, १२, १४-१६, २०, ३२, ३६, ४४, ५०, ५४, ५५, (१४) १-८२, १७) १-१०८, (1)४-७ २. मालिनी -(१) ८५, (५) १०, (६) ५३, (८)१-५५, (१०) ११, ३८, (११) ७२, (१३) ७०, (१९) १०३, (२०) १०१, (२१) १८५ । ३. बसन्ततिलका-(१) ८६, (५)८७, (६)१-५१, (१०) १३, १९, २५, ३१, ४०, ४३, ४६, ४९, ५३-६३, ( १५ / ७०, ( १६ ) ८८, ( १७ ) १०९ (१९) ९७-९९, (प्र) १, २,८। ४. वंशस्थ-(२)१-७४, (१०) १८, २३, २६-३०, ३९, ४१, ४७, ५६, (१२) १-६० । ५. शार्दूलविक्रीडित-(२) ७५, ७७, ७९, (३) ७४, ७६, (५) ८८, ८९, (७) ६७, ६८, (९)८०, (१०) ५७, (१२) ६१, (१३) ७१, (१४) ८४, (१६) ८५-८७, (१७) ११०, (१९) १०१, १०४, (२१) १८३-१८४, (प्र) ३, . ६. द्रुतविलम्बित-(२) ७६, ( ३ ) ७५, (४) ९२, (६) ५२, (१०) २२, ३७, (११) १-७१ । साहिस्थिक सुषमा
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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