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________________ भाव यह है जो राजलक्ष्मी बहुत दुख से होती है, कॉटकाई से जिसको छोटी हैं, जो चपल है, जिसका मन्त दुखदायों है और जो नष्ट होकर भी चिरकाल तक दुख उत्पन्न करती रहती हैं उस राजलक्ष्मी में सुख का लेश कब हो सकता हूँ ? अर्थात् कभी नहीं हो सकता है । जिस प्रकार नदियों के समूह से समुद्र और बहुत भारी ईंधन से अग्नि सन्तुष्ट नहीं होती उसी प्रकार काम के वशीभूत हुआ यह पुरुष कभी भी कामभोगों से सन्तुष्ट नहीं होता है । यह राज्य तैलरहित दीपक की लौ के समान है, जीवन चंचल है, शरीर बिजली के समान क्षणभंगुर है और आयु चपल मेघ के तुल्य है। इस प्रकार इस संसार की सन्तति में कुछ भी सुख नहीं है। फिर भी उसमें मूढ़ हुआ पुरुष अपना हित नहीं करता किन्तु इसके विपरीत मोह बढ़ानेवाला व्यर्थ का कार्य ही करता हूँ | नश्वर त्रिषयों के द्वारा लुभाया हुआ बेचारा मनुष्य, मोहवण बहुत दुख देनेवाले आरम्भ-जनित दोषों को नहीं समझता है 1 यह मेरी कोमलांगी स्त्री है, यह बुद्धिमान् पुत्र है और ये मेरे पूर्वसंचित धन हैं इस तरह निर्बुद्धि हुआ यह नरपशु - अज्ञानी मानव, अणु बराबर सुख में इच्छा उत्पन्न कर आरम्भ के वशीभूत होता है और अधिकतर पहाड़ के समान बहुत भारी दुख को ही प्राप्त करता है | जो मानव अविनाशी मोक्षलक्ष्मी को छोड़कर राजलक्ष्मी प्राप्त करते हैं ये ग्रीष्मकाल में शीतल जल की धारा छोड़कर मृगमरीचिका का सेवन करते हैं । इसलिए बड़ी कठिनाई से दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर बुद्धिमान् मानव को आत्महित में प्रमाद करना उचित नहीं है । इस तत्वचिन्तन के फलस्वरूप जीवन्धर स्वामी संसार की माया - ममता से विरक्त हो मुनि दीक्षा लेने का निश्चय कर लेते हैं और राजकीय व्यवस्था से निवृत्त होकर अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी के समवसरण में वारण करते हैं । घोर तपश्चरण के द्वारा संचित कर्मों का नाश जाकर मुनि दीक्षा कर मोक्ष को प्राप्त होते हैं । इस प्रकार अंगीरस - शान्तरस का समारोप कर महाकवि हरिचन्द्र निम्नांकित पद्यों द्वारा मंगलकामना करते हैं--- साहित्यिक सुषमा प्रजानां क्षेमाय प्रभवतु महीशः प्रतिदिनं सुवृष्टिः संभूयाद् भजतु शमनं व्याधिनिचयः । विधत्तां वाग्देव्या सह परिचयं श्रीरनुदिनं जैनं जीयाद् विलसतु भक्तिजिनपती ॥५९॥ ७७
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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