SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिवार से पृथक् एकाकी रहना पड़ेगा, अपनी उन्नति को छोड़ देना होगा और इस तरह तुम समहीन-गृहरहित हो जाओगे।) इस तरह यहा शब्दालंकार और अर्थालंकार के एकत्र स्थित होने से संसृष्टि अलंकार अत्यधिक सुशोभित हो रहा है । धर्मशर्माभ्युदय का रीति-सन्दर्भ रीति का विन्यास रस के अनुकूल परिवर्तित होता रहता है। कहीं गौड़ी, कहीं • पांचाली, कहीं लाटी और कहीं वैदर्भी रोति का प्रयोग कवि को करना पड़ता है । धर्मशर्माभ्युदय में गौड़ी रोति को छोड़कर तीन रीतियों का यथावसर उपयोग किया गया है। जीवन्धरचम्प में गौड़ी रीति का भी आश्रय लिया गया है। सामहिक विवेचना में धर्मशर्माम्युदय में बेदर्भीरोति मानी जा सकती है। उसका लक्षण विश्वनाथ ने इस प्रकार लिखा है माधुर्यमब्जर्वर्ण रचना ललितारिमका । सावृगिरतपनि गीरी तिरिमाते !! -सा द., परिच्छेद ९, श्लोक २-३ रुद्रट ने भी ऐसा ही कहा है अरामस्तकसमस्ता युक्ता दशभिर्गुणश्च वैदर्भी। वर्गद्वितीयबहुला स्वल्पप्राणाक्षरा च सुविधेया ।। एक-दो उदाहरण देखिए पुन्नागनारङ्गलबङ्गजम्बूजम्बीरली लायनशालि यस्य । शृङ्गं सदापारनभोविहारथान्ताः श्रयन्ते सवितुस्तुरङ्गाः ।।१०-८11 बहलकुङ्कमपङ्ककृतादरा मदनमुद्रितदन्तपदाधराः। तुहिनकालमतो धनकञ्चुका निजगदुर्जगदुत्सवमङ्गनाः ।।११-५५॥ धर्मशर्माभ्युदय में गुणगरिमा मम्मट और विश्वनाथ कविराज द्वारा चधित गुणों को त्रिकुटी ( माधुर्य, ओज और प्रसाद ) को ध्यान में रखते हुए जब धर्मशर्माभ्युदय के गुण का विचार करते हैं तो यहाँ माधुर्य मुण का विस्तार अधिक जान पड़ता है । उसका लक्षण लिखते हुए विश्वनाथ कविराज ने लिखा है चित्तद्रवीभावमयो लादो माधुर्यमुच्यते ।। संभोगे करुणे विप्रलम्भे शान्तेऽधिक क्रमात् ।1८-१॥ सा. दे, । यतश्च धर्मशर्माम्युदय का अंगी रस शान्त रस है अतः उसी के पोषक माधुर्य गुण का समावेश इसमें किया गया है। साहित्यिक क्षेत्र में गुण को रस का धर्म माना गया है । कुछ उदाहरण देखिए ---- साहित्यिक सुषमा ५७
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy