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________________ ७. गुणमाला मह राजपुरी के कुबेरभित्र सेठ और उसकी स्त्री विनयमाला की पुत्री है । हाथी के उपद्रव से जीवन्धरकुमार ने इसकी रक्षा की थी। उसी समय से इसका जीवन्धर के प्रति और जीवन्धर का इसके प्रति अनुराग बढ़ गया था | अनुराग की पूर्ति के लिए इसने जीवन्धर के पास शुक के द्वारा प्रणय-पत्र भेजा और जीवन्धर ने भी इसी शुक के द्वारा प्रतिपत्र भेजा। अन्त में दोनों का विवाह हुआ। श्रीहर्ष के द्वारा नैषध काव्य में मल और वमयम्ती के बीच हंस का दूत बनाया जाना इसी शुकदूत की कल्पना का प्रसार है। ८. सुरमंजरी यह राजपुरी के कुबेरदत्त सेठ और उसकी सुमत्ति स्त्री को पुत्री है। अपने सुगन्धित चूर्ण के विषय में गुणमाला से पराजित होने पर जीवन्धर में इसकी आस्था बढ़ गयी थी। इतनी अधिक, कि इसने अपने अन्तःपुर में अन्य पुरुषों का प्रवेश भी निषिद्ध कर दिया था। परिभ्रमण से तापस आने पर जब जीवन्धर को इस बात का पता चला तब वे एक वृद्ध के रूप में उसके घर गये। जीवन्धरचम्पू का वह सन्दर्भ हास्य रस का अच्छा उदाहरण है। अन्त में दोनों का विवाह हुआ। जहाँ जीवन्धर और नन्दाढ्य में सोभाव है वहाँ जीवन्धर की आठों रानियों में सौमनस्य दृष्टिगोचर होता है । पारिवारिक सुख-शान्ति के लिए इसका होना अत्यन्त यावश्यक है। जीवन्धरचम्पू चरितकाव्य है अतः उसमें अनेक पात्रों का चरित्र-चित्रण हुआ है और धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य है उसमें चरित्र-चित्रण को गौण कर काव्यात्मक वर्णन को प्रमुखता दी गयी है। । कथा
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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