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तदनन्तर चुपचाप वहाँ से चलकर क्षेमदेश के क्षेमनगर पहुँचे। वहां के बास्य उद्यान में सस्रकूट जिनालय देखकर बहुत प्रसन्न हुए । उनके पहुंचते ही चम्पा फूल उठा, कोकिलाएँ बोलने लगीं, सूखा सरोवर भर गया और मन्दिर के द्वार के कपाट अपने झाप खुल गये । कुमार ने सरोवर में स्नान कर भक्तिपूर्वक जिनेन्द्रदेव की पूजा की और वहाँ के सुभद्र रोठ को निर्वृति नामक स्त्री से उत्पन्न क्षेमसुन्दरी कन्या के साथ विवाह किया। एक दिन प्रसन्न होकर सुभद्र सेठ ने जीवन्धर से कहा, "जब मैं पहले राजपुर नगर में रहता था तब राजा सत्यन्धर ने मुझे यह धनुष और ये बाण दिये थे। ये आपके ही योग्य है अतः आप ही ग्रहण कीजिए।" यह कहकर वह धनुष और बाण उन्हें दे दिये । जीवारामार अनुष-बाण करताए। कहीं - उनकी प्रथम स्त्री गन्धर्वदत्ता अपनी विद्या के द्वारा उनके पास गयी और उन्हें सुख से बैठा देख किसी के जाने बिना वापस आ गयी।
“वहाँ से चलकर जीवन्धरकुमार सुजन' देश के हेमाभनगर पहुँचे । वहाँ का राजा दृढमित्र था और उसकी स्त्री का नाम नलिना था। दोनों के एक हेमामा नाम की कन्या थी । हेमाभा के जन्म के समय किसी निमित्तज्ञानी ने बताया कि मनोहर नामक आयुधशाला में जिसका बाण लक्ष्यस्थान से लौटकर पीछे आयेगा वही इस कन्या का पति होगा । अन्य धनुषधारियों के कहने से जीवन्धरकुमार ने भी अपना बाण छोड़ा और वह लक्ष्य को बेधकर वापस उनके पास आ गया। निमित्तज्ञानी के कहे अनुसार उनका हेमामा के साथ विवाह हो गया। गन्धर्वदत्ता की सहायता से नन्दाय स्मरतरंगिणी नामक शय्या पर सोकर भोगिनी विद्या के द्वारा जीवन्धरकुमार के पास पहुँच गया । राजा दृढ़मित्र के गुणमित्र, बहुमित्र, सुमित्र और घनमित्र आदि कितने ही पुत्र थे। उन सबके साथ जीवन्धरकुमार का समय सुख से व्यतीत होता रहा । तदनन्तर उसी हेमाभनगर में श्रीचन्द्रा के साथ युवक नन्दाय का विवाह हुआ। सरोवर का रक्षक एक विद्याधर मुनिराज के मुख से सुनकर जीवन्धर स्वामी के पूर्वभवों का वर्णन इस प्रकार करने लगा ।" १. मद्य चिन्तामणि यानि में कन्या का नाम लेमनी है। क्षेमनगर धने के पूर्व गद्य चन्तामगि आदि में
एक तर वन में तपस्वियों को समीचीन धर्म का उपदेश देने का वर्णन है। २. गा चिन्तामणि आदि में धनुष-बाण देने तथा गन्धर्षयता के पहुँचने का कोई डफदेख नहीं है। ३. गाचिन्तामणि थादि में हेमाभनगर झुंचने के पूर्व अदबी में एक विद्याधरी की कामुकता का वर्णन है। १. गद्यचिन्तामगि आदि में मध्यदेश का उल्लेख है। ५. गाचिन्तामणि आदि में रानी का नाम नलिनी लिखा है। 1. अन्यत्र कन्या का नाम कमकमाता लिखा है। गद्य चिन्तामणि आरि ने वृद्धमित्र के मुमित आदि मृत्रों द्वारा एक आम का फल सोजना, उसमें सफल नहीं होना और जीनन्धरकुमार के द्वारा उसका दोहा जाना. इससे प्रभावित होकर मृमित्र आदि के बारा जीवघर को अपने घर ले जाना, एनमै दास्त्रविना सीखना और अन्त में कनकमाला का विवाह कर देना आदि का वर्णन है। प. इस विवाह का वर्णन गचिन्तामणि आदि में नहीं है। ८. जीवन्धर के पूर्मयों का वर्य न गद्मचिन्तामणि आदि में अन्यत्र दिया है तथा उसमें नाम आदि का बहुत और है।
महाकवि हरिचन्न : एक मनुशीलन
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