SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गन्धर्वदत्ता को सुघोषा नामक वीणा लेकर उसे इस तरह बजाया कि वह अपने बापको पराजित समझने लगी तथा उसी क्षण उसने जोवघर के गले में करमाला डाल दी। इस घटना से काष्ठांगारिक का पुत्र 'कालांगारिक बहुत क्षुभित हुआ। यह गन्धर्वदत्ता को हरण करने का उद्यम करने लगा, परन्तु बलवान जीवन्धरकुमार ने उसे शीघ्न ही परास्त कर दिया | गन्धर्वदत्ता के पिता गरुड़वेग ने अनेक विद्याधरों के साथ आकर सबको शान्त किया और विधिपूर्वक गन्धर्वदत्ता का जीवन्धरकुमार के साथ पाणिग्रहण करा दिया । इसी राजपुरी नगरी में एक वैश्रवणदत्त नाम का सेठ रहता था। उसकी आम्रमंजरी नामक स्त्री से सुरमंजरी नाम की कन्या हुई थी। उस सुरमंजरो को एक श्यामलता नाम की दासी थी। वसन्सोत्सव के समय श्यामलता, सुरमंजरी के साथ उद्यान में आयी थी। वह अपनो स्वामिनी का चन्द्रोदय नामक चूर्ण लिये श्री और उसकी प्रशंसा लोगों में करती फिरती थी। उसी नगरी में एक कुमारदत्त सेठ रहता घा, उसकी जिमला नामक स्त्री से गुणमाला नामक पुत्री हुई थी। गुणमाला की एक विघल्लता' नाम की दासी थी 1 वह अपनी स्वामिनी का सूर्योश्य नामक चूर्णं लिये थी और उसकी प्रशंसा लोगों में करती फिरती थीं । चूर्ण को उत्कृष्टता को लेकर दोनों कन्याओं में विवाद चल पड़ा। उस वसन्तोत्सन' में जीवन्धरकुमार भी अपने मित्रों के साथ गये हुए थे। जब चूर्ण को परोक्षा के लिए उनसे पूछा गया तब उन्होंने सुरमंजरी के चूर्ण और सिद्ध किया। नमर के लोग वसन्तोत्सव में लोन थे। उसी समय कुछ दुष्ट बालकों ने चपलतावश एक कुत्ते को मारना शुरू किया। भय से म्याकुल होकर वह मागा और एक कुण्ड में गिर कर मरणोन्मुख हो गया । जीवघरकुमार ने यह देख उसे अपने नौकरों से बाहर निकलवाया और पंप नमस्कार मन्त्र सुनाया जिसके प्रभाव से वह चन्द्रोदय पर्वत पर सुदर्शन यक्ष हुआ। पूर्वमन का स्मरण कर वह जीवन्धर के पास माया और उनकी स्तुति करने लगा। अन्त में वह जीयन्धरकुमार से यह कहकर अपने स्थान पर चला गया कि दुख और सुख में मेरा स्मरण करना । जब सज लोग क्रीड़ा कर वन से लौट रहे थे तब काष्ठांगारिक के अशनिधोष नामक हाथी ने कुपित होकर जनता में आतंक उत्पन्न कर दिया। सुरमंजरी उसको चपेट में आनेवाली ही थी कि जीवन्धरकुमार ने टीक समय पर पहुँचकर हाथी को १. जीवन्घरदम्प आदि में कालागारिक की कोई चर्चा नहीं है। स्वयं काहगार ने आगत राजकुमारों को उत्तेजित किया है। २, गद्यविस्तामपि तया जोवतारचम्पू आदि में वर्श है कि जीपश्वरकुमार ने गुणमाला के चूर्ण को उस्कृष्ट सिद्ध किया था इसलिए समंजरी कुपित होकर विना तान किमे ही घर वापस चली गयी थी। ३. गद्यविम्तामप्पि आदि में चर्चा है कि भोजन को मुंघने के अपराध से कृम्ति माह्मणों ने उस से को न तथा पर आदि से इतना मारा कि वह मरणोन्मुख हो गया। ३१ महाकवि हरिचन्न : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy