SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को मारने की इच्छा की । उसने धन देकर दो हजार शूरवीर राजाओं को अपने अधीन कर लिया। वह उन्हें साथ लेकर युद्ध के लिए राजमन्दिर की ओर चल पड़ा। जब राजा को इस बात का पता चला तब उसने रानी को गरुडयन्त्र पर बैठाकर यहीं से शीघ्र ही दूर कर दिया। काष्टांगारिक मन्त्री ने पहले जिन राजाओं को अपने वश कर लिया था, उन राजाओं ने जब सत्यन्धर को देखा तब वे मन्त्री को छोड़ राजा की ओर हो गये। राजा सत्पन्धर ने उन सबको साथ ले काष्टांगारिक मन्त्री पर आक्रमण किया और उसे खदेड़कर भयभीत फर दिया । काष्टांगारिक के पुत्र कालांगारिक ने जब पिता को हार का यह समाचार सुना तब वह बहुत-सी सेना लेकर अकस्मात् वहाँ जा पहुँचा। उसकी सहायता से कामरिक ने रान यन्धनको पार हाल और स्वयं राजा बन बैठा। विजयारानी गरुडपन्न पर बैठकर श्मशान में पहुंची। वह शोक से बहुत विह्वल थी परन्तु पूर्वोक्त यक्षी उसकी रक्षा कर रही थी। उसी श्मशान में रात्रि के समय विजयारानी ने पुत्र को जन्म दिया। पुत्र-जन्म का रानी को थोड़ा भो आनन्द उत्पन्न नहीं हुआ। इसके विपरीत भाग्य की प्रतिकूलता पर शोक ही उत्पन्न हुआ। . यक्षी ने सारगर्भित शब्दों में उसे सान्त्वना दी। गन्धोत्कट सेठ भी अपने मृत पुत्र को छोड़ने के लिए उसी श्मशान में पहुंचा और शीलगुप्त मुनिराज के वचनों का स्मरण कर दीर्घायु पुत्र की खोज करने लगा। रोने का शब्द सुन विजयारानी के पुत्र की ओर उसकी दृष्टि गयी। सेठ ने 'जीव-जीव' कहकर उस पुत्र को दोनों हाथों से उठा लिया । विजयारानी ने आवाज से सेट को पहचान लिया और उसे अपना परिचय देकर कहा, "भद्र ! तू मेरे पुत्र का इस प्रकार पालन करना कि जिससे किसी को परिचय न मिल सके।'' 'मैं ऐसा ही करूंगा' कहकर सेट उस पुत्र को घर ले गया और अपनी पत्नी सुनन्दा को डांट दिखाते हुए बोला, "तू ने जीवित पुत्र को मृत कैसे कह दिया ?" सुनन्दा उस पुत्र को पाकर बड़ी प्रसन्न हुई। सेठ ने जन्म-संस्कार कर उसका 'जीवक' अथवा 'जीवन्धर' नाम रखा। सेठ के घर जोवन्धर का अच्छी तरह लालन-पालन १. यहाँ उत्तरपुराण में श्मशान का वर्णन करते हुए गुण भद्र स्वामी ने जलती चिताओं में से बधजले मुरदे पोवार उहें खण्ड-खण्ड कर खातो हुई राकिनियों का दर्शन किया है और इसका अनुकरण कर जोवन्धरचम्पूकार ने भी अक्का गय लिखा है पर गारचिन्तामा में मात्र रमशान का उसलेख कर छोड़ दिया है। उसमें डाकिनी-शाकिनी आदि का कोई उक्लेख नहीं किया है। हाईकनी आदि पन्तर येवों का मांस भक्षण शास्त्र-सम्मत थी तो नहीं है जिन्ह'ने वर्णन किया है एन्होंने मात्र कवि-सम्प्रदायवश किया है। २. चिन्तामणिकार ने यक्षी को विजयारानी की धपक माला दासी के वेप में प्रस्तुत किया है पर . उरारपुराग में इसकी चर्चा नहर है। ३. गयचिन्यामकार ने गन्धरकट के पहुंचने पर रानी का वृक्ष की ओट में अन्तहित कर दिया है और ज्यों हो गन्धोत्कृट ने उस नाशक को उदारा श्मों ही आकाश में 'मीर' इस सन्द का उच्चारण कराया है। ४, पराया पुत्र समझ सुनन्या इसका ठीक-ठीक पालन नहीं करोगी, इस आशका से पूरपर्शी २८ मे सुनन्दा के सामने यह भेद प्रकट नहीं किया कि यह किसी दूसरे का पुत्र है। ३० महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy