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________________ त्रिभुवनगतिभावं घोषयन्यस्य तारो मुखरयति दशाया दुम्नुभिध्वानपुरः । शयितुमिह रागद्वेषमोहान्धकार त्रितयमिव विधूना भाति छत्रधर्य तत् ॥२१॥ अक्षयाय नमस्तस्मै पक्षाधीशनताशौ । दक्षायामासान मजाये .।२६। -पु. १११.११२ उपर्युक्त श्लोकों में 'अष्टप्रातिहायों के द्वारा शान्तिनाम जिनेन्द्र का स्तवन किया गया है। अष्टप्रातिहार्यरूप स्तुति का एक रूप हम एकादश लम्भ के ४५वें श्लोक से लेकर ५२वें श्लोक तक पाते हैं । इन श्लोकों के बीच में गदपंक्तियाँ भी है। दिग्यतरुः वरघुष्पसभूष्टिभिरासमयोजनधोधी । .पातपधारणपामरयुग्म यस्य विभाति मगलत। अशोक मस, देवकृत पुष्पवृष्टि, पुन्दुभिवारन, सिंहासन, रिव्यध्वनि, पत्रम, चामर और भामण्मन में थाठमातिहास कहलाते हैं। मीति-निर्वाज
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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