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________________ अब पुरुदेवचम्पू में अहहास की सूक्ति देखिए-.. जीवन्धर स्वामी की बालकालीन प्रथम गति का वर्णन हरिचन्द्र के शब्दों में देखिए क्रमण सोऽयं मणिकुट्टिमाङ्गणे नखस्फुरत्कान्तिशरोभिरञ्चिते । स्सलत्पदं कोमलपादपङ्कजक्रम ततान प्रसवास्तृते यथा ॥१०४३ -जीबम्धरबम्पू , लम्भ ? क्रम-क्रम से वह बालक नखों की फैलती हुई कान्तिरूपी सरनों से सुशोभित अतएव फूलों से आच्छादित के समान दिखने वाले मणियों के आंगन में लखवाते परों से कोमलचरण-कमलों की डग फैलाने लगा। अब अहहास के शब्दों में भगवान् आदिनाथ की बालकालोन मति का वर्णन देखिए प्रवेपमानामपदं नृपात्मजश्चचाल देवी जनदत्तहस्तः । नवप्रभाभिमणिकुट्टिमाङ्गणे तन्धनप्रसूनास्तरणस्य शङ्काम् ।।३।। -पुरुदेवचम्पू देवियों के द्वारा जिन्हें हाथ का मालम्बन दिया गया था ऐसे राजपुत्र भगवान् वृपभदेव, मणिखचित आंगन में नखों की प्रभा से पुष्पास्तरण की शंका को विस्तृत करते हुए उगमग पैरों से चलने लगे। अभिषेक के अनन्तर हरिचन्द्र के शब्दों में जिनबालक का वर्णन देखिए सिक्तः सुररित्यमुणेत्य यिस्फुरजटालवालोऽथ स नन्दनगुमः । छायां दधत्काञ्चन सुन्दरी नदां सुखाय वप्नु: सुतरामजावत ||१|| -धर्मदासभ्युदय, सर्ग ९ इस प्रकार देवों के द्वारा अभिषिक्त ( पक्ष में, सींचा हुआ) चुंघुराले बालों से सुशोभित ( पक्ष में, मूल और क्यारी से युक्तः ) सुवर्ण-जसी सुन्दर और नूतन कान्ति को धारण करनेवाला ( पक्ष में, अद्भुत नूतन छाया को धारण करनेवाला ) वह पुत्र-कमी वृक्ष ( पक्ष में, नन्दन वन का वृक्ष) पिता के लिए ( पक्ष में, बोनेवाले के लिए ) अतिशय सुखकर हुआ था । अन मन्द-मन्द मुसकान से युक्त जिन-बालक का वर्णन अहहास की वाणी में देखिए जिननन्दनद्रुमोऽयं सिक्तो देवः स्वकालवालेखः । स्मितकुसुमानि दधे द्राक् तन्वानस्तत्र काश्चनच्छावाम् ॥३१॥ -पुरुदेवचम्पू , स्लवक ५ देवों से अभिषिक्त ( पक्ष में, सींचा हुआ) अपने काले बालों से सुशोभित ( पक्ष में, अपनी क्यारी से सुशोभित ) तथा सुवर्ण-जैसी कान्ति ( पक्ष में, किसी महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन २४
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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