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________________ महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृथ्वीपतिके करदेया किसागही हैं, ते वृक्ष लोकनिक्कू फलनिकरि पोते भए ||२४|| नालेरनिका रस सोई भया भासव ताकरि मदोन्मत्त कछुइक घुमें हैं नेत्र जिनके जैसी सिंहलदेशको श्री पृथ्वीपतिका यथ श्रुतिगभीर स्वरसू गावती भई, वह यश सुननारेनि श्रवशमिक मतिसुन्दर ||२५|| ३०२ अर त्रिकूटांचल मलयाचल तिनिके तटदिषै अर पांड्ययाटक नामा पर्वताविषयाका यश क्निरीदेवी प्रतिगम्भीर स्वरसू गावती भई ||२६|| भर मलयाचल के निकट वननिविषं पर सह्याचल के वनविषैयाका यश पृथ्वी के जीतिबेकार उपज्या सो भीलनिकी स्त्री गावती भई ||२७|| घर चंदन का उद्यान ताहि पकिरि मन्द सुनन्ध पवन बाजली भई, मलयाचल के कुन्जनित हरे है नीरनिके जन्नकरण जानें ||२५|| दक्षिण दिशा की पवन चौगिरद विस्तरती नृपका खेद हरती मानू पाहुणगतिकरि सेनाकै लोकनिका सरकारही करें है ।।२६।। अर केरल देशकी श्री लोग इलायची यादि सुगन्ध वस्तुनिकी बारा fare सुगन्ध है मुखके श्वास जिनिके पर जिनके स्तन सघन चन्दन के द्रवकरि चरचे गांड होम रहे हैं ||३०|| पर लीलासहित मन्द है गमन जिनिका मातृ नितंबनिके भारकरि मन्द चालें हैं घर कामके पुष्पवास तिनिकी कली के खिलिकेसे विभ्रमकू घरे सुन्दर है मुलकनि जिनिकी ॥ ३१ ॥ श्रर कोयल के आलाप समान मधुर हैं बचन जिनिके ते बचत प्रतिप्रकट नाही भी बरें है पर प्रतिकोमल जो बाहुलता प्रतिसुभग हिंडोरे समान तिनि मनोज्ञ है चेष्टा जिनिकी ||३२|| घर महासुन्दर नृत्य करती नृत्यसमय स्खलित होय है पगनिकी रचना जिनिकी र बाहुल्यताकरि मोतीनिके आभूषण पहरे जीते हैं भंवर निकै गुन्जार जिनि से मन्द मनोहर गान करती ॥३३॥ स्वर' नाबती तमालवनकीकुजगलीनिर्मे यथेष्ट विचरती नवयोजनकू' करे केरल देशकी स्त्री याका मन प्रसन करती भई ||३४|| सो राजेंद्र दक्षिण दिशा कु शिकार चोल देश केरलदेश के राजा तिनि सबनिकू जीतिके साधनतं वशिकर प्रणाम करावता भया, सब राजा श्राय पांय परे ||३५|| कलिंगदेशके उपजे गज मलयाचल पर्वत समान ऊंचे मातू अपने उच्च शरीरकरि गिरिनिकी उच्चताकू उध हैं ||३६|| दिग्विजयवर्ष सेनाके गज सब दिशानिमें विश्राम करते दिग्गज अंगीकार करते भए, लोकनि जानी- एही दिग्गज हैं मर और दिग्गज कहिए हैं सो उपमाकं अधि कहिलेमात्र है ||३७|| बहूरि भरत क्षेत्रका भूपाल पश्चिमदेशकू प्राप्त होय सध्याचल के समीप मिदिशि के समुद्र तटके राजा तिमिक जीतता भया ||३८|| जीतिका
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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