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________________ हरिवंग पुराण २८६ मुकुट मरिण होहिंगे ।। ::। भाइ माता देख ५. वित्त कुछ ५ अथिर भया अर अन्य हूँ मध्य जीव कइक तद्भव मोक्षगामी शुद्ध रलय के धारक मोक्ष प्राप्त भये पर कईयवा स्वर्गवासी देव भये सो भवघर अभय पद पाबंगे ॥ २४ ।। अर मारद भी आयु पूर्ण कर परभव पधारे। भवान्तर में भवरहित होहिंगे ।। २५ ॥ प्रधानन्तर—बलदेव स्वामी तुगीगिर शिखर पर नाना प्रकार के दुई र तप किये एक उपनास दोय उपवास तीन उपवास, पक्ष उप वाम छ: मासोपवास कर शरीर बहुत सोस्या अर कषाय सोखे पर घंयं पोख्या ।। २७ ।। नगर प्रामादि विर्षे तो गमन निवारा ही हुता ग्राहार के प्रर्थ कातार चर्या धारी हुती सो वन वि विहार करते लोकोंने देखे, मानों याक्षः चद्रमा ही है ॥ २८ ॥ उनको वार्ता पुर ग्रामादि थिों प्रसिद्ध भई सो दर्जन भूपनि बलदेव के समाचार सुन कर शंका मान नाना प्रकार के प्रायुध घर जपसर्ग करने को आये तब सिद्धार्थ देव उनको ऐसी माया दिखाई वे जहा देखें तहां दीखें ।। ३० । मुनि के चरण के समीप सिंहनको देख दुष्ट राजा मनिकी सामर्थ्य जान प्रणाम कर शांत रूप होय गये ।। ३१ ।। तबमे बलदेव को लोग नरसिंह मानते भये दुष्टन को नरसिंह रूप भासे वे महा मुनि सौ वर्ष तप कर चार प्रकार प्राराधना आराध पांचमां ब्रह्म नामा स्वर्ग तहां पदगोनर विमान विषे ब्रह्मा भये ।। ३३ ।। वह विमान रतनमयी देदीप्यमान महामनोहर देव देवियों के समूह कर मडित सुन्दर हैं मन्दिर पर उपवन जा विषं ॥ ३४॥ ऐसे रमणीक विमान विर्षे महा कोमल उत्पादक सज्या ना विवे' हलधर मुनिवर का जीव ब्रह्मद्र भया । जैसे समुद्र विषे महा मणि उपजे तैसे स्वामी स्वर्ग विषे उपजे ॥ ३५ ।। आहार कहिये कर्म वर्गगणाका पाकर्षण अर वैक्रियक शरीर पर पांच इन्द्री पर श्वासोश्वास पर भाषा पर मन इन पट पर्याप्ति तत्काल पुरे कर वस्त्राभरण मंडित सेज पर विराज नव यौवन महा सुन्दर देवन के राजा वह स्वर्ग संपदा देख भर देवांगनान के गीत सुन पर सब देवन को नम्रीभूत देख मन में विचारी यह सब लोग मेरा मुख विलोके हैं मो विषे अनुरागी हैं अर या लोक के सकलही चन्द्र सूर्य हुने अधिक ज्योतिवन्त हैं ॥ ३८ ॥ यह कौन मनोहर देश है यहां के सब लोक हर्षित हैं पर मैं कौन हूं जो यहां का अधिपति भया हूँ अर में कौन धर्म उपाया जो ऐगा उत्तम भव पाया है ।। ३६ ॥ तब वहां के जो मुख्य देव है तिन विनती करी जो यह पांचवां ब्रह्म नामा स्वर्ग है। प्रर. बाप ब्रह्म व हाय यहां सबनके स्वामी भये हो महा तप कर यहां प्राय उगजे हो तब ग्राप अघि
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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