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________________ हरिवंश पुराण २८७ करे तो समस्त लोक विषे व्याप रहे जे मेघ उनकी जो माला के समूह उनकी जो सहनधारा झरे उनकर पाताप क्यों न दूर होय सर्वधा दूर होय ।:२७॥ जो पि जन हैं सी जिन बदमाग से सोविक पुरारा प्रतिरूप उनको तज कर जैन पुराण की पदवी महासरल कल्याण की करणहारी हितकारी उसे गहो, · मोह ही है बाहुल्यता जिसमें ऐसी दिग्मूढ़ता कहिये दिशा भूलपना उसे तजकर भव्य जीत्र शुद्ध मार्ग लेवो । जिन कहिये भगवान वेई भये भास्कर कहिये सूर्य तिन कर प्रगट किया जो शुद्ध मार्ग महा विस्तीर्ण उसके होते सन्ते शुक्र है दृष्टि जिसकी ऐसा सम्यक दृष्टि सो खाडे विर्षे काहेको परे। भावार्थ---सूर्य के प्रकाश विना अन्ध पुरुष संकीर्ण मार्ग विष खा. में पड़े और सूर्य के उदय कर प्रगट भया मार्ग विस्तारणं उस विषे विष्य नेयों का धारक काहेको स्वाद में पड़े ॥२८॥ इति श्री मरिष्टनेमिपुराण संग्रहे हरिवंश जिनसेना वार्यस्य कृती संग्रहविभागवर्णनं नाम प्रथम : सर्ग ॥१॥ पाठवां अधिकार । श्री नेमिनाथ का निर्धारण गमन प्रधानन्तर--सर्व देवन के देव तीर्थ के कर्ता धर्मोपदेम कर भव्यन को कृतार्थ कर उत्तर दिशात सोरठ की ओर गमन किंगा ।।।।। जब जिन रवि उत्तरायणते दक्षिणायन प्राये तब या तरफ पूर्वते उद्योत भयो ।॥ २ ॥ अरहत पद की विभूति कर मंडित महेश्वर जब दक्षिस को विहार किया तब ने दक्षिण के सर्व देश स्वर्ग की शोभा को धारसे भये ।। ३ ।। भगवान भूतेश्वर निवारण कल्याणक पाया है निकट जिनके सुर असुर नरफ कर अचित गिरनार ग्राय विराजे ॥ ४ ॥ पूर्ववत समवसरणकी रचना तहां भई देव दानव मानव तथा तिरयंच सब हो प्रभु की दिश्य ध्वनि सुनते भये ।। ५॥ श्री भगवान सम्यग्दर्शन चारित्र रूप जो महा पवित्र जिनेश्वर धर्म ताका म्यास्यान करते भये सो धर्म स्वर्ग मोक्ष के सुख का साधन है भर साधुन को प्रिय है ।। ६ ।। जैसा केवल ज्ञान के उदय विषे पहले धर्म का उपदेस दिया हुता वैसा ही विस्तार सहित निर्वाण कल्याणक का एक मास
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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