________________
७८
महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
दुख नहि इन्द्री भोग सौ, ताको तहां न लेस । केवल परमानंदमय, वरते देस असेस ॥५१॥ प्रातम अनुभव अम्रता, तिसौ न अम्रत पान। खान पान नहिं ता समां, इह निश्चे परवान ॥५२॥ भोजन तृप्ति समान नहि, सदा तृप्ति वह देस । स्वरस सुधारस पीयवौ, नहि वसना को लेस ।।५३।। क्षुधा तृषा बाधा नहीं, नहीं काल को जोर । जन्म जरा मरणादि नहिं, नहीं रैनि नहि भोर ।।५४।। रागादिक रजनीचरा, तिनको नहि संचार । मोह पिशाचान पुर विष, रोग न सोग लगार ।।५।। काम लोभ परपंच ठग, तिन को तहां न नाम । बस महा सुख सो सबै, भानंदी अभिराम ॥५६॥ धर्म न वसतु स्वभाव सौं, धर्म रूप पुर सोय । राजा परजा धर्म मय, नांहि अधर्मी कोय ।।५७॥ दान न सकल प्रत्याग सौ, त्यागी सब ही भाव । रागी कोइ न दोसइ, वीतराग है राव ॥५८।। सील न विमल स्वभाव सौ, जो अति उजल रूप। सील रूप राजा प्रजा, नहिं विकार स्वरूप ।।५।। तप नहि बांछा रहित सौ, तहां न बछिया होय । भाव अनन्त अपार है, जहां कुभाव न कोय ।।६०।। निज भावन की रम्यता, बहु मनोज्ञता जोय । ता सम नन्दन वन नहीं, निज उपवन है सोय ।।६१।। कहै अमर वन सूत्र में, ताको नाम मुनीस । रमै अमर वन मैं सदा, चिदानन्द जगदीस ॥६२।। सघन स्वभावनि सारिखों, अम्रत वृक्ष न और । ता वन में ते लहल हैं, रमै राव सिरमौर ।।६३।।