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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
जब कमलधी ने परिणाम के बारे में : छ पो रे मोई उन्ना नहीं दिया 1 बह फिर आयिका के पास गयी और उसने उससे भविष्यदत्त एक माह में प्रा जावेगा' यह बात कही।
बन्धुदत्त ने पाकर भविष्यदत्त को अपार सम्पत्ति को अपनी बतला दी। और सबको मान सम्मान कर अपना बना लिया। भविष्यानुरूपा के लिये कह दिया कि यह अपने तिलक द्वीप के राजा द्वारा मेंट में दी गई है । वह अभी कुआरी है। राजा को सब तरह से झूठ बोल कर अपना बना लिया और अपने विवाह की तयारी करने लगा। उधर भविष्यदत्त चन्द्रप्रमु भगवान की भक्ति अर्चना करने लगा। वहाँ एक देव विमान पर पाया और भविष्यदत्त से सब वृतान्त जानने के पश्चात् उसको विमान पर बिठला कर हस्तिनापुर ले पाया । भविष्यदत्त अपनी माता कमलश्री के पास गया और उसकी बन्दना की। वह सब परिजनों से मिला और पिता को साथ लेकर राजा से मेंट की तथा मेंट में बहुत सा सामान दिया। भविष्य दत्त ने राजा से सब वृत्तांत कहा । बन्धुदत्त द्वारा किये गये दुर्व्यवहार की दर्चा की। भयिष्यानुरूपा ने बन्धुदत्त द्वारा अपनी पत्नी बताये जाने का विरोध किया। राजसभा में राजा से एवं सभासदों से सब बीती बातों को बताया । राजा ने वास्तधिक बात को समझ कर बन्धुदत्त को मारना चाहा लेकिन भविष्यदत्त ने राजा को ऐसा करने से रोका । बन्धुदत्त हस्तिनापुर से निकाल दिया गया ।
बन्धुदत्त पोदनपुर पहुंचा और वहां राजा से कहा कि भविष्यदत्त के पास सिंघल देश की पद्मिनी है । वह प्रत्तीय लावण्यवती है। यह राजा के भोगने योग्य है वणिक पुत्र के नहीं । पोदनपुर का राजा विशाल सेना लेकर हस्तिनापुर आया और अपना दूत भेज कर राजा से पद्मिनी को देने के लिये कहा तथा प्राज्ञा के उल्लंघन पर नगर को नष्ट कर दिया जायेगा तथा राज्य पर अधिकार कर लिया जावेगा ऐसा कहा।
हो पठयो पोदनपुर घणी, तही को सेना न पिणी । भूपति बहुत भरै तस वंश, भुज राज निसंक अखंड । तुम लुह दीन्हो उपवेश, सुखस्यो भुजो चाहो देस ।
भवसरन्त के जो पश्मिणो, सो तुम मोकलि ज्यो लक्षणी ।
भविष्यदत्त स्वयं ने शत्रु राजा का चैलेन्ज स्वीकार किया तथा सेना लेकर सड़ने के लिये भागे बढ़ा। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ और अन्त में भविष्य दत्त ने पोदनपुर के राजा को बांध लिया और हस्तिनापुर ले आया।