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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
हो रूपिणिस्यो सुनि बात पयासी, हो सोलह बरस गयां धरि पासी। रीता सरवर अलि भरै जी, हो सूका बन फूल पसमानो । दुध पिर तुम्ह अंचला जी, हो तो जाणी साची महाण ।।१०३।।
हो बात सुणी प्रति हरिक्षो होयो, हो नमसकार नारद ने कीयो । सफल जन्म मेरो कोयौ जी, हो इह तो कथा वारिका जाणी।।
कामदेव संवर घरी जी, ही सुणौ तासु की कथा बखाणी ।।१०४।। काल संघर के यहां प्रद्युम्न का बडा होना
हो सिंघ भूपतीस्यो करि खति, ही संवरि राजा मांडी गते । पुत्र पंचर्स मोकल्या जी, हो जाह बेगि सिंघ भूपति मारी। देखो पोरिष तुम्ह तणो जी, हो ले बीडी चढि चल्या कुमारो ॥१०५।
हो संघ भूपती आगे हारया, हो केई भागा के रिण में मारया । संबर दुख पायो घणो जी, हो चाल्यौ राक दमामो झयो। कामदेव प्राडी फिरिउजी, हो देखो पिता हमारो कीयो ॥१०६।।
हो गर्यो काम जहां सिंघ नरेसो, हो पर सुभट झिडिपई प्रसेसा । कामदेव रिणि प्रागलो जी, हो नागपासि से राली कामो । सिंध भूपती बंधियो जी, हो तंखिण गयौ पिता के गामो ।।१०।।
हो नममकार संबर नै कीयो, हो राजा सिंध बंषि करि दीयो । संवर वरांह बघावणो जी, हो जाण्यो पुत्रि कीया जे काजो। परजा लोक बुलाईया जी, हो साखि देई दीन्हो जुगराजो ॥१०८।।
छो पुत्र पंचसं संबर केरा, हो दुष्ट भउ पति करे धणेरा । मेणसरिस जीते नहीं जी, हो सोलाह गुफा तहां से दीयो । बितर निवस अति घणा जी, हो कातर नर को फाट हीयौ ।।१०६॥
हो कामदेव के पुन्य प्रभाए, हो बितर देव मिल्या सह पाए । करी मैा की बंदना जी, हो दीन्हा जी मिद्या तणा भंडारी । छत्र सिषासन पालिकीजी, हो मेथी घनष खडग हथियारों ॥१०