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महाकवि ब्रह्ना रायमल्ल
१८. उग्रसेन-राजुल के पिता थे।
१६. नेमीश्वर-- २३ वे तीर्थङ्कर नेमिनाथ का ही दूसरा नाम है । ये श्री कृष्णजी के चचेरे भाई थे । जब ये विवाह के लिये तोरण द्वार पर पहुंचे तो उन्होंने एक ओर बहूत से पशु देखे जो बरातियों के लिए खाने के लिये वहां एकत्रित किये गये थे । नेमिनाथ करुणा होकर तोरण द्वार से वैराग्य लेने चले गये । दीर्घकाल तक तपस्या करने के पश्चात् इन्होंने गिरनार से परिनिर्वाण प्राप्त किया।
२०. राजुल–राजा उग्रसेन की लड़की थी। नेयिनाथ ने इनके साथ विवाह न करके बैराम्य धारण कर लिया था। राजुल ने भी नेमिनाथ के संघ में दीक्षा धारण करली और अन्त में घोर तपस्या करके स्वर्ग प्राप्त किया।
भविष्यदत्त चौपई २१. धनपति सेठ—कुरू जागल देश के हस्तिनापुर का नगर सेट था ।
२२. धनेश्वर सेठ- हस्तिनापुर नगर का दूसरा धनिक श्रेष्ठि था । घनश्री उतकी पत्नी थी।
२३. कमलधी-धनेश्वर सेठ की सुपुत्री एवं भविष्यदत्त की माता थी । कुछ समय पश्चात् धनेश्वर सेठ ने कमलश्री का परित्याग करके उसे धनपति सेठ के यहां भेज दिया । क्रमलश्री धार्मिक विचारों की महिला थी। भविष्मदत्त जब विदेश चला गया तब भी वह जित-भक्ति में लगी रहती थी। अन्त में प्रायिका दीक्षा लेकर घोर तप किया तथा स्त्री पर्याय से मुक्ति प्राप्त कर स्वर्ग प्राप्त किया तथा फिर दूसरे भव में जन्म धारण करके अन्त में निर्वाण प्राप्त किया।
२४. सरूपा-धनपति सेठ की द्वितीय पत्नि तथा बन्धुदत्त की माता ।
२५. भविष्यरत - धमपति सेठ का पुत्र था। माता का नाम कमलश्री था। ग्नपने छोटे भाई बन्धुदत्त के साथ विदेश में व्यापार के लिए गया । मार्ग में वन्धुदत उसे मदन द्वीप में अकेला छोड़कर भागे चला गया । भविष्यदत्त को इसी वीप में अनेक विद्याएँ, प्रपार संपत्ति एवं लावण्यवती भविष्यानुरूपा वधु मिली । जब बन्धुदत्त का जहाज पुनः इसी द्वीप में पाया तो भविष्यदत्त एवं उसकी पत्नी उसके