SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 महाकवि भूधरदास : कई विद्वानों ने सन्त साहित्य पर जैनधर्म का प्रभाव भी स्वीकार किया है - श्री अगरचन्द नाहटा ने “सन्मति वाणी” पत्रिका में पं. नर्मदेश्वर चतुर्वेदी के एक निबन्ध "सन्त साहित्य में जैन सन्तों का योगदान” का उल्लेख किया हैं। इस निबन्ध में श्री चतुर्वेदी ने स्पष्ट रूप से जैन सन्तों की वाणी में प्रयुक्त जैन दर्शन की मान्यताओं के प्रभाव को सन्त साहित्य पर स्वीकार किया है। डॉ. पवनकुमार जैन ने लिखा है - "जैन मतावलम्बियों की आत्मशुद्धि एवं आचार शुद्धि की दृष्टि से सन्त बड़े प्रभावित थे। मोक्ष से जोड़ने वाली साधना को जैनों ने योग कहा था और सन्तों का इस विचार से अविरोध था। जैनों के साहित्य में ध्यान का विस्तृत विवेचन मिलता है। 2 डॉ. रामेश्वरप्रसादसिंह की मान्यता है कि सामाजिक दृष्टिकोण से जैन और बौद्ध की दया तथा आचार को सन्त कवियों ने अपनाया। डॉ. सिंह का स्पष्ट मत है कि “जैन सन्त कवियों एवं इनके पूर्ववर्ती कुछ जैनाचार्यों ने हिन्दी के सन्त काव्य को प्रेरित करने में प्रभूत योग दिया है । हिन्दी निर्गुण सन्त काव्य बहुलांशत: प्रेरित प्रभावित हुआ है, यह निस्सन्देह कहा जा सकता है।"3 डॉ. मुक्तेश्वर तिवारी के मतानुसार जैनदर्शन का आधार नैतिक संयम है। प्राचीन मत-मतान्तरों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष से प्रभावित होकर हमारे हिन्दी सन्त कवियों ने भी अपने सम्पूर्ण साधना का मूल आधार नैतिक संयम को ही माना है । नैतिक संयम के अन्तर्गत उन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय,अपरिग्रह, इन्द्रिय-निग्रह, दया, क्षमा कथनी- करनी का एकत्व, विश्वास, श्रद्धा, विनय, मृदु वचन, धैर्य, स्वावलम्बन, परिश्रम, सरल जीवन, परहित साधना, सेवाभाव, साधुसंगति आदि सभी सृजनात्मक कर्मों ने लिया है। " ___डॉ. शिवकुमार की मान्यता है कि संतकाव्य पर जैन मुक्तक काव्य का प्रभाव देखा जा सकता है। 1. शोध प्रबन्ध पत्रिका अप्रेल 1979, बिहार राष्ट्र भाषा परिषद् 2. महावीर वाणी के आलोक में हिन्दी का सन्त काव्य-डॉ. पवनकुमार जैन पृष्ठ 92 3. सन्त साहित्य में योग का स्वरूप-डॉ. रामेश्वरप्रसाद सिंह पृष्ठ 59 4. मध्ययुगीन सूफी और सन्त साहित्य- डॉ. मुक्तेश्वर तिवारी पृष्ठ 292-293 5, हिन्दी साहित्य : युग और प्रवृत्तियाँ- डॉ.शिवकुमार पृष्ठ 124
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy