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महाकवि भूधरदास :
. कबीर का कथन है कि चाहे दारिद्रय् भोगना पड़े, रूखा सूखा खाने को मिले, फिर भी साधु की संगति मली है तथा वैभव और अच्छे भोजन के साथ भी दुर्जनों का संग ठीक नहीं हैं
कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय।
खीर खांड भोजन मिले, साठक संग न जाय । 11. सहज साधना - सभी सन्त सहज साधना के पक्षधर थे, परन्तु उनकी सहज साधना सिद्ध योगियों और नाथपंथियों की सहज साधना से पृथक है। जहाँ सिद्ध योगी या सहज यानी पंच कामगुणों अर्थात् पंचेन्द्रियविषयों को भोगते हुए मुक्ति मानते हैं । 'वहाँ सन्तों का मानना है कि विषयतृष्णा सोंचने से बुझती नहीं, बल्कि और अधिक बढ़ती जाती है। सिद्ध उन्मुक्त भोग के समर्थक थे, परन्तु कबीर ने सर्वप्रथम तत्कालीन समाज द्वारा स्वीकृत मुक्त इन्द्रियोपयोग वाले सहज का विरोध किया। सिद्धों के लिए जो सहज था, संतो के लिए वही असहज था। सिद्धों का सहज “महासुख" है, जो पंच कामगुणों के भोग से प्राप्त होता है । जबकि सन्तों का सहज राम है; जो चित्त की निर्मलता, इन्द्रिय-विषयों का त्याग और अहंकार के क्षय से प्राप्त होता है । सन्त कबीर उसे ही सहज कहते हैं ; जिसमें विषयों का त्याग हो---- (1) सहजै सह. सब गए. सुत बित कामिनि काम ।
एकमेक ह्दै मिलि रहा, दास कबीरा राम ॥' (2 ) · सहज सहज सब कोई कहै सहज न बोन्है कोई।
जिहिं सहजै विखया तजी, सहब कहावै सोई॥'
इस प्रकार सन्तों की सहज साधना में विषयभोगजन्य कष्टों, संघर्षों एवं दुरूहताओं से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।
12. सहज समाधि - सन्तों के अनुसार प्रभु के नामस्मरण में निरन्तर स्थित होना ही सहज समाधि है । सहज समाधि वह ध्यान का समाधि है; जिसमें कायक्लेश द्वारा अपने आपको विशेष प्रक्रियाओं से साधित करने की आवश्यकता नहीं है। इस स्थिति में शुद्ध अन्तःकरण की स्वाभाविक शक्ति प्रकट हो जाती
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1, पंचकामगुणेषोअर्हि (अरू) णिचिन्तधिणेहि। __ एज्वेलन्पण परम पर किम्बहुबोल्लियेहिं । दोहाकोष गीति दोहा 144 तथा 48 2. तस्ना सींची न बुझे,दिन-दिन बढ़ती जाय । कबीर ग्रन्थावली, तिवारी, पृष्ठ 236 साखी 13 3. कबीर ग्रन्थावली,तिवारी, पृष्ठ 242 साखी 1
4, वही साखी 3