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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन सन्तों ने इस जगत को दुखमय देखा था। उन्हें कोई भी शरीरधारी सुखी नहीं दिखा। सुखी तो एक सन्त है। उसके सुख का कारण भी प्रेम है। इस प्रेम से संशय का नाश होता है तथा प्रिय से मिलन होता है - पंजर प्रेम प्रकासिया, आगी जोति अनन्त । संशय खूटा सुख भया, मिला पियारा कन्त ।।' यह प्रेम भाग्यवानों को ही मिलता है। इस प्रेम के बिना भक्ति भी सच्ची नहीं होती - भाग बिना नाहि पाइये, प्रेम प्रीति की भक्त । बिना प्रेम नहिं भक्ति कछु, भक्ति भयो सब जक्त॥' प्रेम के बिना भक्ति निरर्थक और दंभमात्र रह जाती है - प्रेम बिना जो भक्ति है सो निज दंभ विचार। उदर भरन के कारने, जनम गवायों सार ।। सन्तों की भक्ति एवं प्रेम के सम्बन्ध में अन्य अनेक बातें भी महत्त्वपूर्ण हैं। यथा - जब तक विषयों के प्रति आकर्षण बना रहता है वह प्रेमस्वरूपी भगवान हृदय में नहीं आता और जब वह मन में बस जाता है तो चित्त विषयों से अलिप्त हो जाता है - बिखै पियारी प्रीति सौं, सब हरि अतंरि नाहिं। जब अंतरि हरिजी बसैं, तब विखिया सौ चित्त नाहिं ।' भक्ति से विषयों का त्याग और विषयों के त्याग से भक्ति सम्भव होती है।' सन्तों के अनुसार भक्ति शास्त्रचर्चा का विषय नहीं करनी या आचार का विषय है । ' सत्संग के बिना भाव उत्पन्न नहीं होता है और भाव के बिना भक्ति उत्पन्न नहीं होती।' सन्त नाम जप को सबसे बड़ी साधना मानते हैं, लेकिन वे भाव को वैकल्पिक कभी नहीं मानते । भाव अगर न हो तो राम कहने से गति नहीं मिल सकती, उसी तरह जैसे खांड कहने से मुँह मीठा नहीं होता, आग कहने से पाँव नहीं जलता, जल कहने से प्यास नहीं बुझती, भोजन कहने से भूख नहीं मिटती और धन कहने से दारिद्रय नहीं जाता। आदमी के साथ 1. कबीर ग्रन्थावली, तिवारी पृष्ठ 167:7 24 3. सन्त कबीर की साखी पृष्ठ 41 4. कबीर ग्रन्थावली तिवारी पृष्ठ 157:30 5. रैदास सन्सकाव्य, पृष्ठ 214 : 6. कबीर सन्त काव्य पृष्ठ 188 : 46 7. सन्त काव्य, पृष्ठ 223:25
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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