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________________ 428 महाकवि भूधरदास : जिसप्रकार सन्तों ने ब्रह्मगुणगान या हरि का यशोगान करने के लिए काव्यरचना की; उसीप्रकार भूधरदास ने भी अपने इष्ट के गुणगान हेतु रचना "प्रभु चरित्र मिस कियपि यह कीनों प्रभु गुणगान ।" निष्कर्षत: जिसप्रकार सन्तों का काव्यादर्श ब्रह्मगुणगान के साथ-साथ पुस्तक ज्ञान की निरर्थकता, बाह्याचारों की हीनता, संसार व माया की निन्दा करते हुए काम-क्रोधादि मानसिक रोगों से मुक्त कर शुद्ध बनने की प्रेरणा देना, ब्रह्म में निरत रहने का उपदेश देना है । उसीप्रकार भूधरदास के साहित्य का आदर्श भी संसार, शरीर व भोगों की अनित्यता, निस्सारता, दुःखरूपता बतलाकर रागादि विकारी भावों से मुक्त होने एवं आत्मा में लीन होने की प्रेरणा देना है। सन्त साहित्य की विशेषाताएँ - सन्त साहित्य में कलापक्ष सम्बन्धी अनेक विशेषताएँ हैं । विभिन्न विद्वानों ने सन्त साहित्य की विविध विशेषताओं की ओर ध्यान दिलाकर उनकी विवेचना की है। जिनका विवेचन प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में यथास्थान किया गया है । समानताओं और असमानताओं का विवेचन किया जा रहा है - समानताएँ - सन्तसाहित्य और भूधरसाहित्य में या भूधरदास एवं सन्तों में अनेक समानताएँ दिखलाई देती हैं; जो निम्नलिखित हैं 1. ईश्वरीय प्रेम एवं मानवीय प्रेम दोनों में है। 2. आध्यात्मिक विवाह एवं विरहमाव दोनों में हैं। 3. ईश्वर के प्रति भक्तिभाव एवं सेवा भाव दोनों में है। 4. गुरु का महत्व दोनों में समान है। 5. सत्संगति का महत्व दोनों में है। 6. वैराग्यपूर्वक मानवीय गुणों का महत्त्व दोनों में है । 7. अहंकार एवं विषयतृष्णा के त्याग की प्रेरणा दोनों में है। 1. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 25 2. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध, प्रथम अध्याय, सन्त साहित्य की विशेषताएँ
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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