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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन के हाँ ओर जरा ठीक से देखते पास इतना धन है कि न 12 अभियान नि के भण्डार भरे है, बहुत से लोग रास्ता निहारते हुए दरवाजे पर खड़े रहते हैं, जो वाहनों पर चढ़कर घूमते हैं, झीनी आवाज में बोलते हैं, किसी की भी तक नहीं हैं, जिनके बारे में लोग कहते हैं कि इनके जाने ये उसे कब तक खायेंगे, इनका धन तो ऐसे वैसे कभी पूरा ही नहीं होनेवाला है, वे ही पापकर्म का उदय आने पर नंगे पैरों फिरते रहते हैं, कंगाल होकर दूसरों के पैरों की सेवा करते फिरते हैं। अहो ! ऐसी स्थिति होने पर भी अज्ञानी जीव वैभव पाकर अभिमान करते हैं। धिक्कार हैं उनकी उल्टी समझ को, जो वे धर्म नहीं सम्भालते हैं. .. W कंचन भण्डार भरे मोतिन के पुंज परे, घने लोग द्वार. खरे मारग निहारते। जान चढ़ि डोलत है झीने सुर बोलत हैं काहू की हू ओर नेक नीके ना चितारते। कोलौं धन खांगे कोउ कहे यो न लागै, सेई फिरै पाँय नांगे कांगे पर पग झारते । एते पै अयाने गरबाने रहैं विभौ पाय, धिक है समझ ऐसी धर्म ना संभारते ॥' कवि अभिमान न करने की बात दूसरों शब्दों में इस प्रकार कहता है - गरब नहिं कीजै रे, ऐ नर निफ्ट गँवार । झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि लीजे रे । कैछिन सांझ सुहागरू जोवन, कै छिन जग में जीजै रे ॥ 200. धन के सम्बन्ध में चिन्तन, धनप्राप्ति भाग्यानुसार संसारी प्राणी धन प्राप्त करने के लिए अनेक विचार करता है तथा धन होने पर अनेक मनसूबे बाँधता है - चाहत है धन होय किसी विध, तौ सब काज सरें जियरा जी। गेह चिनाय करूँ गहना कछू ब्याहि सुता सुत बाँटिये भाजी | 2. प्रकीर्ण पद भूधरदास 1. जैनशतक, भूधरदास, पद्य 34 417 -
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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