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महाकवि भूधरदास:
2. कामी कामी व्यक्ति पाप से नहीं डरता, लोकलज्जा नहीं करता
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तथा हित अहित का विचार नहीं करता है -
पाप कर्म को डर नहीं, नहीं लोक की लाज । कामी जन की रोति यह धिक तिस जन्म अकाज ॥
कामी काज जकाज मैं, होहे अंध अविवेक । टेव ॥
मदनमत्त मदमत्तसम, जरो जरो
यह
पिता नीर परसै नहीं, दूर रहे
रवि यार ।
अविचार ॥
ता अंबुज में मूढ अलि, उरझि मरे त्यों ही कुविसनरत पुरुष होय, अवशि अविवेक हित अनहित सोचें नहीं, हिये विसन की टेक
3. अन्धपुरुष :- आँखरहित व्यक्ति को अन्धा नहीं कहते, अपितु हृदयरूपी आँखें न होने वाला व्यक्ति मूलतः अन्धा है
लोचनहीने पुरुष को, अन्ध न कहिये भूल । उर लोचन जिनके मुंदे, ते अंधे निर्मूल ॥
इसी प्रकार जिनको सच्चे देव-शास्त्र-गुरु-धर्म की पहिचान होती है, वे नेत्रवान हैं तथा जिनको इनकी पहिचान नहीं है, वे अन्धे हैं -
देव धर्म गुरु ग्रन्थ ये, बड़े रतन संसार । इनको परखि प्रमानिये यह नरभव फल सार ॥ जे इनकी जानै परख, ते जग लोचनवान । जिनको यह सुधि ना परी, ते नर अंध अजान ॥
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4. दुर्गतिगामी जीव :- दुर्गति में गमन करने वाले जीव का स्वभाव
हैं कि उसके हृदय में महामलिन (अति बुरे) भाव निवास करते हैं -
1 पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 1, पृष्ठ 5
2 व 3 पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 5, पृष्ठ 44
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