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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन (पथ), पौढ़ना (सोना, लेटना), बेग (शीघ्र) , अरदास (प्रार्थना), थाली (पात्र विशेष), सिलग (प्रज्वलित है) इत्यादि। विदेशी शब्द - बदबोई (बदबू फारसी विशेषण) खुमारी (अरबी, फारसी विशेषण), आखिर (अरबी, फारसी विशेषण), दिवाना (दीवाना, फारसी संज्ञा, पुल्लिग), अमल (अरबी संज्ञा पुल्लिग), अरज (अर्ज, अरबी संज्ञा, स्त्रीलिंग) गफिल (अरबी संज्ञा, पुल्लिग), नफा (फारसी संज्ञा, पुल्लिग), ख्याल (ख्याल, अरबी संज्ञा, पुल्लिग) इत्यादि। गुणव्यंजक पदावली - साहित्यकारों ने रसात्मक काव्य के तीन गुण माने हैं - माधुर्य, ओज और प्रसाद । माधुर्य गुण के अभिव्यंजक वर्ण द, छ, इ द, को छोड़कर अन्त्यवर्णों ङ, ञ्, म्, ण, से संयुक्त क से म पर्यन्त 21 वर्ण हैं । ओज गुण के व्यंजक वर्ण क च, ट, त, प, ग, ज, ड, द, ब, वर्ण अपने वर्ग के प्रथम वर्ण के अन्त्य वर्ण घ, झ, द, ध, भ के संयोग से निर्मित पद है अर्थात् ओज गुण में वर्ग के पहले व दूसरे वर्षों तथा तीसरे व चौथे वर्षों का योग होता है। अर्थात् प्रसाद गुण के अभिव्यंजक वे वर्ण हैं, जिनका अर्थज्ञान श्रवण मात्र से हो जाता है । प्रसाद गुण में वर्गों का कोई नियम नहीं है । उपर्युक्त आधार पर भूधरसाहित्य में तीनों गुण उपलब्ध होते हैं। 1. माधुंय गुण - श्रृंगार, शान्त, भक्ति एवं वात्सल्य रसात्मक स्थलों पर माधुर्य गुण का सौन्दर्य अभिव्यक्त हुआ है । यथा - ललित वचन लीलावती, शुभलच्छन, सुकुमाल । सहज सुगंध सुहावनी, जथा मालती माल॥ शीलरूप लावण्यनिधि, हावभाव रसलीन । सीमा सुभगसिंगार की, सकल कला परवीन ।' 2. ओज गुण - वीर, वीभत्स, भयानक, और रौद्र रसात्मक स्थलों पर ओजगुण प्रकट हुआ है। उदाहरणार्थ - चीरे करक्त काठ ज्यों, फारै पकरि कुठार। तोड़े अन्तरमालिका, अन्तर उदर विदार ।। 1. पार्श्वपुराण कलकत्ता, अधिकार 4, पृष्ठ 38
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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