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एक समालोचनात्मक अध्ययन
भूधरदास का कलापक्षीय अनुशीलन
पक्ष)
भूधरदास का भावपक्ष (अनुभूति पक्ष) के समान कलापक्ष (अभिव्यक्ति पर्याप्त प्रभावशाली है। उनके कलापक्ष के अनुशीलन हेतु भाषा, छन्दविधान, अलंकार - विधान, प्रतीक योजना, नीतियों एवं सूक्तियों का प्रयोग आदि का अध्ययन अपेक्षित है। इन सबका क्रमानुसार विवेचन निम्नांकित है -
( क ) भाषा :- कवि भूधरदास ने अपने लेखन में प्रयुक्त भाषा को कोई विशेष नाम से सम्बोधित न करके मात्र "भाषा" शब्द से अभिहित किया । इस सम्बन्ध में उनके कथन द्रष्टव्य है
है
1 " ज्ञान अंश चाखा भई ऐसी अभिलाखा अब
करूँ जोरि भाखा जिन पारसपुरान की ।'
"
2
3
“पूरव चरित विलोकिकै भूधर बुद्धि समान । भाषाबन्ध प्रबन्ध यह कियो आगरे थान ।। "2
" अच्छरसंधि समास ज्ञानवर्जित विधि हीनी_
धर्मभावना हेतु किमपि भाषा यह कीनी ॥ *
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कवि ने तत्कालीन भाषा में पार्श्वपुराण की रचना इसलिए की ताकि जो लोग बुद्धि की हीनता से संस्कृत आदि भाषा में लिखे गये ग्रन्थों को नहीं पढ़ सकते वे देशभाषा में उन्हें पढ़ सकें। इसी कारण भूधरदास ने देशभाषा में पार्श्वपुराण रचा
आगे जैनग्रन्थन के करता कवीन्द्र भये, करी देवभाषा महाबुद्धिफल लीनो हैं । अच्छरमिताई तथा अर्थ की गंभीरताई, पदललिताई जहाँ आई रीति तीनों हैं ॥ काल के प्रभाव तिन ग्रन्थन के पाठी अब, दीसत अलप ऐसौ आयो दिन होनो है।
1. पार्श्वपुराण कलकत्ता, पीठिका पृष्ठ 2
2. पार्श्वपुराण कलकत्ता, पृष्ठ 95 3. पार्श्वपुराण कलकत्ता, पृष्ठ 95