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महाकवि भूघरदास :
तप करना तथापि उसके अन्तर्मन में क्रोध की ज्वाला धधकती ही रहती है। वह कभी शान्तचित्त होकर तप नहीं करता है । ज्ञान और वैराग्य रहित अंहकार की भावना सहित तप करके वह “संवर" नामक ज्योतिषी देव बनता है । देव बनकर भी वह वैर साथ लिये रहता है। इसी से प्रेरित होकर वह पार्श्वनाथ की तपस्या में विघ्न उपस्थित करता है। परन्तु जब पार्श्वनाथ अपने आत्मध्यान से चलायमान नहीं होते और पूर्ण वीतरागता और केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थकर बन जाते हैं, तब उसे अपने किये पर पश्चाताप होता है । वह शर्म से उनके चरणों में झुक जाता है। अपनी भूल को स्वीकार कर पश्चाताप करना मानव का एक महान् गुण है । कमठ के जीव अर्थात् संवर नामक ज्योतिषी देव द्वारा किये गये पश्चाताप से उसका चरित्र सर्वाधिक उदात्त हो जाता है । यह पश्चाताप उसे पतित से पावन बना देता है। वह पश्चाताप की अग्नि में तप कर कंचन की भाँति शुद्ध हो जाता है। उसका यह पश्चाताप एक महती उपलब्धि है, जिसे प्राप्त कर वह सद्धर्भ से युक्त हो जाता है और अनी आत्मा के पति बना लेता है।
इस प्रकार कमठ का जीव या "संवर" ज्योतिषी देव अहंकारी, क्रोधी, निर्दयी, ढोंगी, दुराचारी एवं बदला लेने वाला होकर भी अन्त में सद्गुणों से युक्त हो जाता है।
“पार्श्वपुराण" में "संवर" का अन्तिम सद्गुणसम्पन्न रूप विस्तृत न होकर पूर्व का कामी, क्रोधी एवं निर्दयी रूप ही विस्तार पा सका है। अत: वह इसी रूप में पाठक पर अधिक प्रभाव डालता है । अन्तिम देवत्वरूप तो पार्श्वनाथ के तीर्थकरत्व से प्रभावित जान पड़ता है।
निष्कर्ष रूप में प्रतिनायक “संवर" ज्योतिषी देव का चरित्र अनेक मानवीय दुर्बलताओं एवं बुराइयों को लिए हुए अन्त में सद्गुणों की ओर बढ़ता हुआ चित्रित हुआ है। संवर" पार्श्वपुराण का द्वितीय प्रमुख पात्र है।
___ अन्य प्रमुख पात्र - “पार्श्वपुराण में नायक “पार्श्वनाथ" एवं प्रतिनायक "संवर" के अतिरिक्त अन्य कोई प्रमुख पात्र नहीं है। इसमें नायिका एवं प्रतिनायिका का अभाव है । नायक “पार्श्वनाथ" तो मोक्षसाधना हेतु (स्त्री त्यागी) ब्रह्मचारी रहकर ही मोक्षसाधना में संलग्न होते हैं, परन्तु प्रतिनायक कमठ का जीव या संवर नामक ज्योतिषी देव भी अनेक कुयोनियों में दुःखी होता हुआ