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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 201 8. विवेक, धैर्य, साहस, पुरुषार्थ आदि से नायक को अभीष्टफल (मोक्ष) की प्राप्ति प्रदर्शित की गई है। कथानक द्वारा तीर्थकर के चरित्र का गान तथा उनके उदात्त चरित्र से प्रेरणा ग्रहण करने का उपदेश दिया गया है। 10. काव्यरचना द्वारा सदाचरण पर बल तथा नैतिक आदर्शों की स्थापना की गई है। 11. दार्शनिक परिपार्श्व में तात्त्विक विवेचन तथा शुद्धात्मतत्त्व पर बल दिया गया है ! ज्ञान और वैराग्य के प्रेरक गुरु की भक्ति की गई है। मानव हृदय को विलोड़ित करने वाले रति, निवेद, क्रोध, घृणा वात्सल्य, भक्ति आदि सभी भावों का वर्णन किया गया है। 14, कवि द्वारा जैन-आस्थाओं को व्यक्त करते हुए लोकभाषा, लोकछन्द, लोकसंगीत एवं लोकप्रिय कथानक के माध्यम से साहित्य सर्जना की गई है। 15. साहित्य सर्जना द्वारा जैनधर्म के प्रचार एवं प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया गया है। 16. ब्रजभाषा के सहज और कलात्मक - दोनों रूपों का प्रस्तुतीकरण किया गया है। 17. कवि ने लोक जीवन के विशिष्ट शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों, उपमानों आदि का चयनकर भाषा की समृद्धि में समुचित योगदान दिया है। 18. कवि द्वारा इतिवृत्त उपदेश, संवाद या प्रश्नोत्तर. निषेध, प्रबोधन, व्यंग्य या भर्त्सना, संबोधन, मानवीकरण या मूर्तिकरण, गीत, सटेक गीत आदि अनेक शैलियों का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार पार्श्वपुराण अनेक विशेषताओं से युक्त “महाकाव्य है।
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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