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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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ब्रजभाषा में सरलता, सहजता, माधुर्य, लालित्य, सौकुमार्य, कलात्मकता आदि अनेक गुणों का होना, लोक जीवन के विशिष्ट शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों, उपमानों आदि के प्रयोग द्वारा भाषा की विशिष्ट समृद्धि अनेक छन्दों, राग-रागनियों एवं शैलियों का प्रयोग, ढाल के रूप में देशी संगीत का विधान, लोक संगीत के अन्तर्गत टेक शैली की प्रमुखता आदि अनेक विशेषताओं को नवीन उद्भावनाओं के रूप में वर्णित किया जा सकता है । इस प्रकार भूधरदास द्वारा वर्णित समग्र विषयवस्तु परम्परागत होकर भी मौलिक है। अत: उसमें परम्परागतता और नवीन उद्भावनाएँ - दोनों का विशिष्ट स्थान बन गया है। दूसरों शब्दों में भूधरदास के वर्ण्य-विषय (कथानक) को परम्परानुमोदित जानकर भी मौलिक मानना चाहिए।
7. प्रबन्ध काव्य की दृष्टि से कथानक पर विचार एवं प्रबन्ध की विशेषताएँ - भारतीय एवं पाश्चात्य सभी आचार्य इस सम्बन्ध में एक मत है कि प्रबन्धकाव्य की कथावस्तु अव्याहत, सुश्रृंखलित एवं सुविन्यस्त हो, उसकी प्रबन्ध धारा अटूट हो। यही कारण है कि भारत और पश्चिम में इसके लिए सर्गबद्ध होना आवश्यक बतलाया है । प्रबन्धकाव्य के कथानक की सफलता के लिए नाट्यसन्धियों का विधान होना अथवा कथानक का आदि, मध्य और अन्त सुस्पष्ट होना आवश्यक है। “पार्श्वपुराण" में नाट्यसन्धियों का विधान भले स्पष्ट न हो; परन्तु उसका आदि, मध्य और अन्त अत्यन्त स्पष्ट है। पूर्व के नौ जन्मों की कथा आदि , वर्तमान पार्श्वनाथ के रूप में जन्म लेना मध्य तथा तीर्थकरत्व प्राप्तकर सिद्ध बन जाना अन्त है। कथा के आदि भाग के नौ जन्मों की सभी घटनाएँ, मध्य भाग की घटनाओं की ओर प्रवाहित होते हुए अन्त में काव्य के उद्देश्य की प्राप्ति (पार्श्वनाथ के सिद्ध बन जाने) में समाप्त होती हैं।
पार्श्वपुराण" की मुख्य घटना या आधिकारिक कथा है - पार्श्वनाथ का तीर्थकरत्व प्राप्तकर सिद्ध होना । शेष सभी घटनाएं या प्रासंगिक कथाएँ जैसे - पूर्व के नौ जन्म, पंचकल्याणकों का विशद् विवेचन, समवशरण प्रवर्तन द्वारा धर्मोपदेश आदि उसके इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। आधिकारिक कथा का आदि, मध्य और अन्त तो सुनियोजित है ही, परन्तु प्रासंगिक कथाएँ भी पार्श्वनाथ के