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महाकवि भूषरदास :
वर्ष से भी अधिक हो गये थे, लेकिन उनके द्वारा स्थापित अध्यात्म सैली पूर्ववत् चल रही थी। इस सैली में कविवर भूधरदास का व्यक्तित्व उभर रहा था । दौलत जब अपारा पहुँचे तो से फैली के सहन ही नियमित सदस्य बन गये और जब तक आगरा रहे, तब तक वे अध्यात्म सैली में बराबर जाते रहे । अपनी प्रथम कृति "पुण्यास्त्रव कथाकोश" में उन्होंने अध्यात्म सैली एवं उनके सदस्यों का विस्तृत वर्णन दिया है। उन्होंने सर्वप्रथम आगरा रहते हुये ही संवत् 1777 में "पुण्यास्त्रव कथाकोश" की रचना समाप्त की । '
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दौलतराम एवं भूधरदास की भेंट सर्वप्रथम आगरे में हुई थी । दौलतराम के अनुसार भूधरदास आगरे की अध्यात्म सैली के प्रमुख विद्वान थे । वे स्याहगंज में रहते थे । ये अधिकांश समय जिनेन्द्र पूजा एवं भक्ति में लवलीन रहते थे । डॉ. कासलीवाल के उक्त कथनों से भूधरदास जी की शिक्षा-दीक्षा एवं ज्ञान की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है ।
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भूधरदास को संस्कृत, प्राकृत एवं देशभाषा सम्बन्धी चारों अनुयोगों के ग्रन्थों का अच्छा अभ्यास था; इसीलिए ब्र. रायमल उन्हें "बहुत जैन शास्त्रों के पारगामी " मानते हैं । वे लिखते हैं- " भूधरदास साहूकार व्याकरण का पाठी, घणां जैन शास्त्रां का पारगामी तासूं मिले”4 | कवि द्वारा लिखित " चर्चा समाधान" नामक गद्य कृति में दिये गये विविध उद्धरण, प्रमाण, ग्रन्थों का नामोल्लेख ' तो उनके गम्भीर अध्ययन के द्योतक हैं ही, परन्तु "पार्श्वपुराण" नामक महाकाव्य में भी गोम्मटसार, तत्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि, त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदि विभिन्न ग्रन्थों का नामोल्लेख भी उसका सूचक हैं।
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कवि उच्च कोटि का विद्वान होने के साथ साथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती, और उर्दू आदि का भी ज्ञाता था ।
भाषा और विषय के अतिरिक्त कवि को काव्यशास्त्रीय ज्ञान भी था ।
1. दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व और कृतित्व डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल प्रस्तावना पृष्ठ 66 2. वही पृष्ठ 11
3. " चर्चा समाधान ग्रन्थ में उद्धृत चारों अनुयोग संबंधी ग्रन्थों के नाम प्रस्तुत शोध प्रबंध, चतुर्थ अध्याय पृष्ठ 152
4. पं. टोडरमल व्यक्तित्व और कर्तृत्व डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल परि. 1 जीवन पत्रिका पृष्ठ 334
5. लगभग 85 ग्रन्थों का नामोल्लेख किया है इसका विवरण प्रस्तुत शोध प्रबंध अध्याय 4