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महाकवि भूषरदास :
नाम - भूधरदास ने प्राय: अपने सभी पदों तथा शेष अन्य रचनाओं में "भूधर" शब्द का प्रयोग किया है। परन्तु उनकी प्रसिद्धि "भूधरदास" के नाम से ही है। प्राय: उनकी सभी प्रकाशित रचनाओं में “भूधरदास" नाम हो देखने को मिलता है । पं. दौलतरामजी ने उन्हें “भूधरमल" नाम से सम्बोधित किया है तथा ब्र. रायमलजी ने उनके लिए “भूधरमल्ल" शब्द का प्रयोग किया
इस तरह आलोच्य कवि का नाम "भूधर, भूधरदास, भधरमल और भूधरमल्ल मिलता है परन्तु सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम “भूधरदास" ही है।
शिक्षा - भूधरदास के काल में शिक्षा प्रायः पारिवारिक संस्कार, सामाजिक आचार-विचार, आध्यात्मिक संगोष्ठी तथा धार्मिक प्रवचन आदि के द्वारा हुआ करती थी। भूधरदास की शिक्षा “आध्यात्मिक संगोष्ठी" में हुई, जिसे "रैली" कहा जाता था। आगरा में प्रचलित “वाणारसिया सैली” द्वारा कवि का ज्ञान विशेष वृद्धि को प्राप्त हुआ। 'इन सैलियों में अध्ययन करने वाले विद्धान प्राय:
आध्यात्मिक साहित्य की ही रचना करते थे; क्योंकि इन सैलियों का उद्देश्य "आध्यात्मिकता" जागृत करना होता था। भूधरदास आगरे की उसी अध्यात्म परम्परा के थे, जो महाकवि बनारसीदास से प्रारम्भ हुई थी।
भूधरदास आगरा की अध्यात्म सैली के प्रमुख विद्वान थे। इनके साथ हेमराज, सदानन्द, अमरपाल, बिहारीलाल, फतेहचन्द, चतुर्भुज आदि साधर्मी भी थे, जो प्रतिदिन परस्पर तत्वचर्चा किया करते थे। इन सबका उल्लेख पण्डित दौलतराम कासलीवाल ने “पुण्यास्त्रव कथाकोश" की प्रशस्ति में इस प्रकार किया है - 1. (क) आगरे में बाल बुद्धि भूधर खण्डेलवाल, बालक के ख्यालौ कवितकर जाने हैं।
जैन शतक पद 106 (ख) पूरब चरित्र विलोकिके पूधर बुद्धि समान । भाषाबंध प्रबंध यह कियो आगरे थान ।।
पार्श्वपुराण 95 (ग) भूधर विनवे विनय कर सुनियो सज्जन लोग।
गुण के ग्राहक हूजिये इह विनती तुम जोग। चर्चा समाधान पृष्ठ 122 2. अनेकान्त वर्ष 10, किरण १, पृष्ठ 9-10 3. जीवन पत्रिका-अ.रायमल, पंडित टोडरमल व्यक्तित्व और कर्तत्व, परिशिष्ट 1 पृष्ठ 334 4. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, भूमिका– डॉ. प्रेमसागर जैन पृष्ठ 17 सन् 1964 5. वही पृष्ट 336