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एक समालोचनात्मक अध्ययन
"बाबीस परीषह" चित्र सहित श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र सोनागिर के चन्द्रप्रभ भगवान के गख्य प्रन्दिर में संगपरमर पर उत्कीर्ण हैं। ये सब उनकी कीर्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
उपर्युक्त सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने शोध का विषय "हिन्दी संत साहित्य के विशेष सन्दर्भ में महाकवि भूधरदास : - एक समालोचनात्मक अध्ययन" निश्चित करके प्रस्तुत शोध प्रबन्ध लिखा है । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध नौ अध्यायों में लिखा गया है; जिनका संक्षिप्त सारांश निम्नलिखित
प्रथम अध्याय में संत साहित्य का सर्वांगीण अनुशीलन करते हुए “संत* शब्द का अर्थ एवं लक्षण, संत साहित्य की विशेषताएँ, संत साहित्य का काव्यादर्श, संत परम्परा, संत काव्य के साहित्य-असाहित्य की समीक्षा, संतयुगीन परिस्थितियाँ, संतों का प्रदेय, संत साहित्य की प्रासंगिकता आदि पर विचार किया गया है।
द्वितीय अध्याय में भूधरदास की समयुगीन परिस्थितियों का राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं साहित्यिक दृष्टि से विवेचन किया गया है।
तृतीय अध्याय में भूधरदास के जीवनवृत्त और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है । जीवनवृत्त के अन्तर्गत नाम, शिक्षा, परिवार, निवास स्थान, एवं कार्यक्षेत्र का विवेचन करने के साथ-साथ जन्म-मृत्यु एवं रचनाकाल का निर्धारण किया गया है।
भूधरदास की समयांकित प्रथम कृति जैनशतक विसं. 1781 की रचना है। दूसरी कृति पार्श्वपुराण का रचनाकाल वि. सं. 1789 है। तीसरी गद्यकृति "चर्चासमाधान" का रचनाकाल वि.सं. 1806 है । इसप्रकार भूधरदास का रचनाकाल 25 वर्ष सिद्ध होता है।
विभिन्न अन्त: साक्ष्यों के आधार पर भूधरदास का जन्म समय प्रथम रचना जैनशतक वि.सं. 1781 से लगभग 25-26 वर्ष पूर्व विसं. 1756-57 तथा मृत्युकाल अन्तिम रचना से लगभग 16-17 वर्ष बाद विसं 1822-23 सिद्ध होता है । इस प्रकार भूधरदास का समय विसं. 1756-57 से वि.सं. 1822-3 तक कुल 65 वर्ष निश्चित होता है । भूधरदास अठारहवीं शती के प्रमुख जैन कवि हैं।