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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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भूधरदासयुगीन पृष्ठभूमि
प्रसिद्ध समाजशास्त्री अरस्तू के शब्दों में मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज से पृथक् उसके अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। पशुओं का भी एक सामाजिक जीवन होता है। वे साथ-साथ उठते-बैठते, खाते पीत और क्रीड़ा करते हैं। एक दूसरे के सुख दुःख में सहानुभूति का परिचय देते हैं। फिर बुद्धि और भावनाओं का अक्षयकोष मानव असामाजिक कैसे रह सकता है ? कवि समाज से कई रूपों और अर्थों में प्रभावित होता है, साथ ही महान कवि समाज और समय को भी प्रभावित करता है। अतः साहित्यकार एवं उसके प्रामाणिक अध्ययन के लिए उस युग की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं साहित्यिक स्थितियों का अवलोकन करना आवश्यक हैं।
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देश और काल से साहित्य का अविच्छिन्न सम्बन्ध हैं और प्रत्येक देश के विभिन्न कालों की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि स्थितियों का प्रभाव उस साहित्य पर पड़ता है, ।' डॉ. रामशंकर रसाल के अनुसार भी " जनता की चित्तवृत्ति पर देश की राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक एवं धार्मिक परिस्थितियों अथवा दशाओं का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जनता की चित्तवृत्ति की परम्परा इसी से मिश्रित होती है। अतः साहित्य की परम्परा को समझने के लिए प्रथम ही इन सबका पर्याप्त या पूर्णज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए क्योंकि साहित्य की परम्परा जनता की परम्परागत चित्तवृत्तियों से ही पूर्णतया प्रभावित होती हुई बना करती है" । अतः भूधरदास को समझने के लिए उन समकालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक सन्दर्भों एवं तात्कालिक साहित्यिक प्रवृत्तियों को समझना आवश्यक है; जिनसे वे यत्किंचित् प्रभावित हुए थे }
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(क) राजनीतिक परिस्थितियाँ
ऐतिहासिक दृष्टि से भूधरदास का काल औरंगजेब, जहाँदरशाह, फरूखशियार तथा मुहम्मदशाह का शासन काल रहा। यह समय मुगल सत्ता के अवसान का समय था। बाबर से शाहजहाँ तक का वैभवशाली मुगल साम्राज्य अब औरंगजेब के अधीन था। औरंगजेब ने अकबर की उदारनीति को पूरी तरह समाप्त कर दिया ।
1. हिन्दी साहित्य -- डॉ. श्यामसुन्दरदास पृष्ठ 25
2. हिन्दी साहित्य का इतिहास- डॉ. रामशंकर शुक्ल 'रसाल'