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महाकवि भूधरदास :
भगवन्त भजन ....... भगवन्त भजन क्यों भूला रे। टेक ॥ यह संसार रैन का सपना, तन-धन वारि बबूला रे।।
भगवन्त भजन . ॥ इस जीवन का कौन भरोसा, पावक में तृण पूला रे। काल कुठार लिए सिर ठाड़ा, क्या समझे मन फूला रे ।।
॥ भगवन्त भजन . ॥ स्वारथ साथै पाँव-पाँव तू , परमारथ को लूला रे। कहुँ कैसे सुख ये हैं प्राणी, काम करै दुख मूला रे ।।
। भगवन्त भजन . ॥ मोह पिशाच छल्यो मति मारे, निज कर कध वसूला रे। भज श्री राजमती-वर 'भूधर', दो दुरमति सिर धूला रे।।
। भगवन्त भजन . "
- भूधरदास