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व्याख्या-धैर्य नामक कोतवाल बहुत समझदार और बलवान था। अक्षोभ (नहीं घबड़ाना) रूप धैर्य गण सम्यग्दृष्टियोंके होता है । उसके कारण ही उस नगर की रक्षा होती थी । उस पुण्यनगरके सभी निवासी सम्यग्दृष्टि थे । उनका वेश अच्छा था । वे सुबुद्धि सम्पन्न थे । उत्तम विचार वाले थे । उनका आचरण श्रेष्ठ था । अर्थात् उस नगरके सभी निवासी मोक्षमागी थे । परन्तु ये चारों दत संसारमार्गी थे । इन चारों का वेष, रूप, बुद्धि, विचार, आचरण प्रभृति सभी अशुभ अर्थात् खोटे थे । इन चिह्नों से एकान्त दृष्टि जानकर कोतवाल (धैर्य) ने इनको डाँटा
और दामनीतिसे काम लेकर पुण्यपुरीमें प्रवेश नहीं करने दिया । दोहा :
तोनि गए तिहू वाट होइ कपटु कियउ मनु घिटछ । जिस सरवरि तिय भरहि जलु सित सरि जाइ घट्ट ।।१६।।
अर्थ-उनमेंसे तीन दूत (कुशास्त्र, पाप और द्रोह) तो तीन मार्गोकी ओर चले गए, किन्तु कपट ने अपने मनको ढीठ बनाया और जहाँ सरोवर पर स्त्रियाँ जल भर रही थी, उस तालाबके किनारे जा बैठा (अर्थात् छिप गया) ।
व्याख्या-उनमें से "कुशास्त्र' मनुष्यगति रूपी मार्ग की ओर चला गया क्योंकि उसका उपदेश सुनने वाले अन्य मनुष्य थे । “पाप' नरक गतिके मार्ग में चला गया क्योंकि पापकर्मसे वही गति प्राप्त होती है । "द्रोह" तिर्यचगतिकी ओर चला गया । क्योंकि तियंचों में आहारादि विषयमें परस्परमे कलह बैर भाव रूपी द्रोह बना रहता है । परन्तु पुण्यपुर के
निवासियों की गति तो मात्र देवगति हैं अत: इन तीनों दूतोंके लिए यहाँ __ कोई संस्थान नहीं था । "कपट" नामका दूत यथा नाम तथा गुण निकला
वह डॉट सुनकर भी कहीं नहीं गया । अपने मालिक (मोह) की आज्ञा का पालन करनेके लिए वह विवेक का पता लगानेके लिए उस ज्ञान रूपी सरोवर पर जा बैठा जहाँ इन्द्रियाँ रूपी पनिहारिनें जल भरती थीं । स्त्रियों का स्वभाव होता है कि वे परस्परमें नगर की चर्चा करती हैं । इसलिए कपट वहीं छिपकर बैठ गया ।
कपट नामक दूत का पुण्यपुर में भ्रमण वस्तु छन्द :
ज्ञानु सरवरु ध्यानु तिसु पालि