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मदनजुद्ध काव्य कवि बूचराज का सर्वप्रथम उल्लेख वि० सं० 1582 में रचित "सम्यक्त्व कौमुदी' की प्रशस्ति में हुआ है । प्रशस्ति के अनुसार राजस्थान की चम्पावनी नगरी के शासक महाराज रामचन्द्र के समय खण्डेलवालवंशीय. साह गोत्र वाले श्रावक काधिल एवं उनके परिवार ने "सम्यक्त्व कौमुदी' की प्रतिलिपि कराकर ब्रह्म बृचराज को प्रदान की थी । यथा___"संवत् 1582 वर्ष फाल्गुन सुदी 14 शुभदिने श्री मूलसंधे बलात्कारगण सरस्वती नगरे भट्टारक प्रभाचन्द्र देवास्तदाम्नाये चंपावती नामनगरे महाराव श्रीरामचन्द्र राज्ये खंडेलवालान्वये साह गोत्रे संघभारधुरंधर सा० काधिल भार्या कावलदे तस्य पुत्र जिनपूजापुरन्दर सा गूजर भार्या प्रथम लाछी दुलीय सरो''- एतान इदं शास्त्र कौमुदी लिखाप्य कर्मक्ष्य निमित्तं ब्रह्म बूचराज दत्तं ।।''
उक्त प्रतिलिपिकार-प्रशस्ति से इतना तो विदित हो ही जाना है कि कवि बुचराज ब्रह्मचारी थे और भट्टारक प्रभाचा शिष धे। उस समय अभावी ( राजस्थान.) में मूलसंघ के भट्टारकों की प्रतिष्ठा थी । भट्टारक संघ में गुरु-शिष्य परम्परा का उत्तम निर्वाह होता था एवं उनमें पठन-पाठन की उचित व्यवस्था रहनी थी, कदाचित इसीलिए भक्त श्रावकों द्वारा भट्टाराकों-ब्रह्मचारियों एवं साधुओं के लिए पाण्डुलिपियों की प्रतिलिपियाँ कराकर भेंट करने की परम्परा रही होगी। कवि का समय
कवि बुचराज ने अपनी दो रचनाओं के लेखन-काल का उल्लेख किया है। मयणजुद्ध का लेखन काल वि० सं० 1589 शरदकालीन आश्विनमास के शुक्लपक्ष की पडिमा शनिवार, हस्तनक्षत्र एवं संतोष जयतिलकु का लेखन-काल वि० सं० 1591 भावदा सुदी पंचमी । कवि ने प्रस्तुत कृति दशलक्षणपर्वपर स्वाध्याय हेतु समाज को भेंटस्वरूप प्रदान की थी । मयणजुद्ध में कवि ने लेखन-काल के अतिरिक्त कोई जानकारी नहीं दी, जबकि “संतोष जयतिलकु" में उक्त लेखनकाल के साथसाथ हिसार नगर में उसकी रचना किए जाने का भी उल्लेख किया है ।
इन दोनों प्रतियों का अध्ययन करने से कवि के कुल लेखन-काल एवं कुल आयुष्य तथा कृतित्व का लेखा-जोखा कर पाना सम्भव नहीं । केवल इतना ही अनुमान लगाया जा सकता है, कि लेखन-काल वि० सं० 1580 से वि० सं० 1600 के आसपास रहा होगा । कवि का निवासस्थान--
कवि के माता-पिता का एवं निवासस्थान का भी कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता । रचनाओं की भाषा के आधार पर ये राजस्थानी कवि सिद्ध होते हैं । "सम्यक्त्व कौमुदी' की प्रशस्ति में भी चम्पावती नगर का उल्लेख आया है । उसके