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________________ मदनजुद्ध काव्य एवं व्यापारों (उद्यमों) में लीन हैं, जो रात - दिन पर निंदा और पर- कथा ( दूसरों की) में ही लगे रहते हैं तथा और भी काम उन्मादमें मतवाले हो रहे हैं, वे इस संसार रूपी भयानक समुद्रमें गिरते हैं । शुभध्यानकी ओर नहीं आते । नौवाँ रस ( काम पर विजय प्राप्त करने वाला) यह अमृत ( शान्त) रस ही हैं । उसको (कामीजन) कान से नहीं सुनते । व्याख्या --- नौवाँ रस शान्त रस है । वह अमृत रस हैं। ससार रूपी समुद्र (८४ लाख योनियों) में पड़नेसे रोकने वाला हैं, जिन पुरुषोंने इस रसको प्राप्त नहीं किया, वे इस ग्रन्थके सुननके अधिकारी नहीं। उनकी पहचान यही है कि उन्हें पर विषयोंकी कथा ही अच्छी लगती हैं। वे रातदिन विषयोंके धंधों में लीन रहते हैं शुभ या रहित अर्भ चैत्र ध्यानमें मग्र रहते हैं। उनके चित्तमें इस नवम रसका प्रवेश नहीं हो पाता । कामी की परिणति सबसे खोटी परिणति है। वह विष के समान हैं । ग्रन्थ कथा प्रारम्भ वस्तु छन्द : - दोहा : पुव्व करम गहि संधिय सह सु दुख संताठ | इसु काया गढ़ भिंतर वसड़ सु चेयणराउ ।। ६ ।। अर्थ - इस काया (शरीर) रूपी गढ़ ( किले) के भीतर चेतन रूपी (आत्मा) राजा निवास करता है । वह पूर्व कर्मोंको ग्रहण करता हुआ, उनके बन्धनमें ऐसा बँधा हैं कि दुःखोंके संतापको सहता रहता व्याख्या— अनादिकालसे जीव (चेतन) और शरीर (जड़) का सम्बन्ध ऐसा बना हुआ है कि वह कभी अलग नहीं हुआ । चेतन राजा उस शरीरको गढ़ बनाकर अपने को सुरक्षित समझता है, किन्तु वहाँ भी पूर्वके कर्मरूपी शत्रु अनेक संताप देते हैं । यह चेतन राजा समझदार होते हुए भी इस शरीर के भीतर ही दुःख सहता रहता है । यह चेतनकी ही भूल है । जब तक वह अपनी इस भूलको नहीं छोड़ेगा, तब तक चतुर्गति रूप संसार में भ्रमण करता हुआ, वह अपने शरीररूपी कारागारमें पड़ा रहेगा। राजा चेतन एवं उनका परिवार राउ खेबणु काय गढ़ मज्झि । नहु जाणड़ सार बिहु मनु मंत्रीय परबलु वरणाणहु । 3
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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