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प्रस्तावना
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साथ ही ब्रह्मदत्त चक्रवर्त्ती, राजा श्रेणिक ( 49-50 ) एवं भरत पुत्र मारीच का भी उल्लेख किया हैं, जिसने जैन तपस्या से भयभीत होकर अन्य दर्शन मठ ( मत ) की स्थापना की थी और जो सदियों तक जन्म-मरण का चक्कर लगाता रहा (51) I
कामी नारियाँ -
अपने वर्णन क्रम में कवि ने कामी नारियों का वर्णन भी किया है। कामी नारियाँ अपनी कामुक चेष्टाओ और हाव-भाव से श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पुरुषों के मन को विचलित कर देती हैं। वे प्रमदानारियाँ विविध प्रकार के अपने बनाव- शृंगार से कायर पुरुषों को तो मोहित करती ही हैं साथ ही बुद्धिमान, विवेकी और शक्तिशाली वीर भी उनके वशीभूत हो जाते हैं। ऐसी कामिनी महिलाओं के सौन्दर्य-दर्शन मात्र से वीरों का रस सूख जाता है, स्पर्श करने से तेज नष्ट हो जाता है और उनके मैथुन से आयु क्षीण हो जाती हैं । वे नारियाँ पुरुष के पास द्रव्य को देखकर चित में अत्यधिक प्रसन्न होती हैं। वे कामी (वेश्या) नारियाँ अपने मन में अन्य पुरुष का विचार करती हैं, अन्य पुरुष से वार्ता करती हैं तथा अन्य पुरुष का विश्वास करती हैं ( 38-43 ) ।
इस प्रकार कवि ने वसन्त ऋतु के माध्यम से कामी नारियों का स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक वर्णन आलंकारिक भाषा-शैली में किया है।
कामी
'पुरुष
कामी पुरुष प्रमदा नारियों के सौन्दर्य जाल में फँसकर अपने उत्कृष्ट जीवन को व्यर्थ ही खो देते हैं तथा अपने पुरुषत्व का अभिमान नष्ट कर डालते हैं बड़े-बड़े शील और सत्य के धनी भी उनके मायाचारी गुणों से अपने सत्य और शील को गंवा बैठते हैं ।
इस क्रम में कवि ने जैन और जैनेसर चक्रवर्ती, ऋषि, मुनि आदि का उल्लेख किया हैं कि मनुष्य काम-भोगों में फँसकर कर्मबन्ध करके जन्म मरण के चक्कर काटता रहता हैं और नरकयोनि का बन्ध रहता है ( 40-52 ) |
सौन्दर्य-प्रसाधन
कवि बूचराज ने बसन्त आगमन के प्रसंग में महिलाओं के श्रृंगार का जो वर्णन किया है । वह चित्ताकर्षक, सुरुचिसम्पन्न एवं आह्लादकारी है ।
महिलाएं अपने केशों को अत्यन्त सुन्दरता के साथ सुसज्जित करती थीं पहले केशों को संवारती थी, फिर उनकी वेणियाँ बनाकर विविध प्रकार के पुष्पों की मालाओं से सजानी थी। मांग में मोती की माला धारण करती थीं। माथे पर कस्तूरी का तिलक लगाती थीं और दांतों को बिजली के सदृश धवल रखती थी । आभूषण एवं वस्त्र
आभूषण एवं वस्त्र मानव समाज की सौन्दर्य-प्रियता, सुरुचि सम्पन्नता समाज
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