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मदनजुद्ध काव्य वहीं उसे ( कपटी-साधु को ) चारों ओर सख़ और शान्ति ही दिखलाई पड़ी । उसने वापिस आकर राजा मोह से सब समाचार कह सुनाया, जिसे सुनकर उसे बड़ा दुख हुआ।
राजा मोह न शो है। चिंता, रोष, शॉक, सताय, झूठ, क्लेश, दुराव, आदि सभी को अपने दरबार में बुलाया और उनसे कह। "जब तक विवक जीवित है, तब तक हमारे सम्पूर्ण सुख व्यर्थ हैं।' यह सुनकर उसका पुत्र कामदेव क्रोध से उसी प्रकार काँपने लगा जैसे वन में हाथी को देखकर केहरि ( सिंह ) क्रोध से कांपने लगता हैं । उसने प्रतिज्ञा की मैं शीघ्र ही निवृत्ति सहित विवेक को बंदी बनाकर आपके समक्ष लाऊंगा।
इस प्रतिज्ञा से मोह अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने मदन को अपने हाथों से पान का बीड़ा दिया । कामदेव के साथ कुबुद्धि, कुशिक्षा और कुमति को भी भेज दिया गया ।
कामदेव को अपनी विजय की पूर्ण आशा थी । उसने पहले वसन्त को भेजा । वसन्त के आगमन से चारों ओर प्रकृति हरी-भरी हो गई, सभी वृक्ष-लताएँ नवपल्लव
और पुष्पों से भर गए । भ्रमर गूंजने लगे, कोयल मधुर तान छेड़ने लगी । चारों ओर मलय समीर बहने लगी । वातावरण में मादकता छा गई । सभी लोग कहने लगे कि मदन का आगमन हो गया । कामदेव सभी पर विजय प्राप्त करता हुआ पुण्यपुरी की ओर बढ़ा । जब विवेक ने कामदेव को अपनी ओर आते देखा, तो वह वहाँ से धर्मपुरी की ओर चला गया, जहाँ ऋषभेश ध्यानस्थ थे । वहाँ प्रभु ने विवेक का विवाह संयमश्री से कर दिया, जहां वह अपनी पत्नी के साथ विविध सुख भोग करने लगा।
कामदेव ने समझा कि विवेक युद्ध-भूमि से पीठ दिखाकर भाग गया है, तब वह प्रसत्रचित्त होकर अपनी सेना सहित अपनी पापपुरी में लौट आया । वहां उसका बहुत आदर-सत्कार हुआ । उसकी पत्नी रति ने जब युद्ध का सारा वृत्तान्त जाना, तो उसने कहा कि अभी धर्मपुरी को जीतना तो शेष ही है । रति की यह बात सुनकर कामदेव क्रोध से भर उठा और उसने शीघ्र ही धर्मपुरी को जीतने के लिए प्रयाण किया ।
कामदेव, क्रोध, मोह, मान, माया तथा हाव-भाव और विभ्रम-विलास के शस्वों को लेकर धर्मपुरी की ओर चल पड़ा । दोनों ओर की सेनाएँ युद्ध-स्थल पर एकत्रित हो गईं और घमासान युद्ध हुआ । सभी विकारी भावों ने मिलकर ऋषभदेव के गुणों पर आक्रमण कर दिया । लेकिन शुभ भावों ने सभी को धराशायी कर दिया । मोह ने अपना रौद्र रूप दिखला कर आक्रमण किया किन्तु विवेक ने उसे लन्काल पराजित कर दिया । इस कारण वह उल्टे पैर भागने पर विवश हो गया ।