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मदनजुद्ध काव्य
मडिल्ल छन्द :
पहिली प्रतिमा दसणु धारहु बीजी हिम्मुलु वउ उद्धार तीजी तिहु कालिहि सामायिक घउथी पोसाहु सिवसुख दायकु ।।१४८।। ___ अर्थ-प्रथम दर्शन प्रतिमा (प्रतिज्ञा) धारण करो । दूसरी निर्मल व्रत प्रतिमा का उद्धार करो । तीसरी तीन समय सामायिक करो । चौथी शिव सुख दायक प्रोषध प्रतिभा है ।
व्याख्या--प्रतिमा का अर्थ है प्रतिज्ञा ! संयम की प्रतिज्ञा करना। प्रतिमा मूर्ति को भी कहते हैं । सच्चे श्रावक की आकृति ही ऐसी हो हो जाती है जिसके कारण उसे धर्म मूर्ति, दयामूर्ति एवं अहिंसा की मूर्ति कहा जाता है । पहली दर्शन प्रतिमा है । इसका पालन करने से वह सम्यग्दर्शन की मूर्ति अर्थात दार्शनिक प्रतिभा धारी बन जाता है । देवशास्त्रगुरुधर्म को ही नमस्कार करता है । अन्यको नहीं । वह अष्ट मूलगुणों का धारी, सप्तव्यसनो का त्यागी एवं पंचपरमेष्ठी का पासक होता है। दूसरी प्रतिमा व्रतप्रतिमा है । निरतिचार पूर्वक बारह व्रत पालन करने से उसकी आत्मा निर्मल हो जाती है । आत्मा को पापकार्यों से बचाकर पुण्य की अभिलाषा रहित पुण्यकार्य करने वाला व्रती श्रावक कहलाता है । वह पूर्ण रूप से अहिंसा को अपनाता है ।
पंचमि सबल सचित्त विवज्जा छट्ठी राइमोयणु ण किज्जाहु सत्तमि वंभवरतु दिदु पालहु अट्ठमि आपणु आरंभु टालहु ।।१४९।।
अर्थ-पाँचवी सम्पूर्ण सचित्त का त्याग करो । छठवीं रात्रि भोजन मत करो । सातवीं व ब्रह्मचर्य व्रत का दृढ़ता से पालन करो । आठवीं अपना आरम्भ त्याग करो ।।
व्याख्या--ये सभी प्रतिमाएँ यथा नाम तथा गुण हैं । इनका क्रम भी अच्छा है । जब पहले दर्शन (श्रद्धान) हो जाए अर्थात् अपने को देख लो तब व्रत करना श्रेष्ठ है । जब व्रतके द्वारा इन्द्रियाँ बंधी जाती है तब सामायिक सम्भव है । इससे एकाग्रता आती है और आत्म शुद्धि होती है । सामयिक के बाद प्रोषधोपवास प्रतिभा की स्थिति ठीक बन जाती है । विषय-कषायों का त्याग हो जाता है । और आत्मा में निर्मलता