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________________ ७४ मदनजुद्ध काव्य उठि कोहु चलिउ झाला करालु तव उपसमि ले हणियउ कवालु ।।१०७।। अर्थ-विषय (इन्द्रियों) नामके जो और भी वीर थे, वे दुस्सह रूपसे दौड़ कर आ गए वे सभी प्रत्याख्यान (संयम) नामके वीरका बल देखकर (भयके कारण) पथ (मार्ग) से ही भाग गए | उसके बाद क्रोध (कषाय) नामका वीर विकराल ज्वालाके समान चला तब उपशम भटने उठकर उसके कपालमें मारा (वह भी धराशायी हो गया) । व्याख्या-विषय अर्थात् अविरति दो प्रकारकी हैं । १. इन्द्रिय अविरति और २. प्राणी अविरति । जीव अनादिकालसे दोनों अविरतिका सेवन कर रहा है । उस विषय नीरने प्रत्याख्यान वीरको देखा । प्रत्याख्यान संयम को कहते हैं । इसके दो भेद हैं । १. इन्द्रिय-संयम और २. प्राणीसंयम | संयम वीर के समक्ष विषय-वीर खड़ा नहीं रह सका. वह भाग खड़ा हुआ । इसके पश्चात् क्रोध नामक वीर उपस्थित हुआ। उसका प्रतिकार क्षमा वीरने किया । क्षमाने अपने प्रहार से क्रोध का नाम शेषकर दिया । आत्मामें कलुषता का उत्पन्न होना क्षमा कहलाती है । वह आत्माकी महान् शक्ति है । जहाँ क्षमा रहती है वहाँ क्रोध एक क्षण भी नही ठहर सकता इसीलिए कहा गया है-"क्षमावीरस्यभूषणं ।" क्षमा वीरोंका आभूषण मद अट्ठ सहितु गज्जियउ मानु तिनि महवि जित्तउ करिवि तानु तव माया उट्टिय अति करुरि मलि अज्जवि दिण्णिय हेठि चूरि ।।१०८।। अर्थ-(तत्पश्चात्) मान नामका धीर अपने आठों मद सहित गरजने लगा । मार्दव (नामके वीर) ने उन सभी को कमान तान कर जीत लिया, तब अत्यन्त क्रूर माया उठकर लड़नेको तैयार हुई । इसे आर्जव वीरने नीचे पटककर मल-मलकर (मसल-मसलकर) चूर्ण कर दिया (उसकी श्वास निकाल दी) । व्याख्या–युद्ध भूमिमें दो वीर परस्पर युद्धके लिए आते हैं । उनमें जो बलवान होता है, वह निर्बलको भूमिमें पटककर उसकी छाती पर चढ़ जाता है और मसल-मसल कर उसे प्राण रहित कर देता है । तभी योद्धाकी विजय मानी जाती है । यहाँ भी कविने परस्परमें भावोंके युद्धका वर्णन किया है । मार्दव अर्थात् कोमलताने मानको और आर्जव अर्थात् सरलताने मायाको दबोच लिया एक क्षण भी उसे भागनेका अवसर नहीं दिया ।
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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