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मदनजुद्ध काव्य
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अर्थ - राजा मोह इन शकुनोंको प्रमाण मानता हुआ अत्यन्त गर्वमें चढ़ गया (गर्वसे परिपूर्ण हो गया)। कार्य नाशके अवसर पर पुरुषोंकी बुद्धि चली जाती ( नष्ट हो जाती है) यह ठीक ही है इस प्रकार ( यात्रामें) वह पड़ाव पड़ाव करता हुआ धर्मपुरके घर की तरफ चला । वहाँ आगम और अध्यात्म नामके दूत थे, उनसे अपनी सार (रहस्यपूर्ण बात ) बताई, ( अपने आनेकी सूचना दी ) |
व्याख्या - श्री आदीश्वरके आगम और अध्यात्म नामके दो दूत धर्मपुरीके द्वार पर पहरा दे रहे थे । राजा मोहने इन दूतोंको अपने आनेकी सूचना दी और बतलाया । शास्त्रोक्त युद्धनीति है कि पहले शत्रुके पास अपना संदेश भेजना तब उसके तैयार होने पर युद्ध प्रारंभ करना । मोहने इसी नीतिका पालन किया । आगम उसे कहते हैं, जिसमें सभी द्रव्यों तथा जीव के चारित्र व्रत, तप आदि का वर्णन होता है । अध्यात्म उसे कहते हैं, जहाँ शुद्ध आत्मदृष्टिले आमा जान होता है। भगवान आदिनाथके पास ये दोनों ही थे ।
आदीश्वर की मदन पर चढ़ाई
आगम ध्यातम विणिचर तिनिहु जणायउ जाउ । मनमथु राइ ।। ९३ ।।
तुम्ह उपरि मल्लाणियउ स्वामी अर्थ- आगम और अध्यात्म दोनों दूतोंने जाकर (भगवान आदीश्वरसे) कहा - हे स्वामिन्! तुम्हारे ऊपर मन्मथ सहित राजा मोह चढ़ाई के लिए आ पहुँचा हैं ।
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व्याख्या- दोनों दूतोंने जाकर ऋषभदेवको संदेश दिया कि मोह और मदन दोनों सेना लेकर लड़नेके लिए द्वार पर आ पहुँचे हैं । यहाँ कविने प्रथम तीर्थकर ऋषभदेवका ही नाम लिया है क्योंकि १८ कोडाकोडी सागरके पश्चात् भरतक्षेत्र में मोक्षमार्गका प्रारम्भ हुआ है । अतः मोह ने उस मोक्ष मार्गको रोकनेकी कोशिश की है। उसका विचार था कि सभी मेरे घोरकुण्डमें पड़े रहे, कोई निकलने न पाए ।
मंडिल्ल छन्द :
सुणिवि बात मनि रहसु उपाय गरबत्तुणु न वि काई वि लायल सार देह विवेक्क सभा जोडि शुभ मंतु
बुलाव
उपावहु ।। ९४ ॥
अर्थ -- यह बात सुनकर ( भगवान ऋणभदेवने) मनमें हर्ष ही उत्पन्न