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मदन पराजय ये देव सपरिवार थे और दिव्य आयुधोंसे अलंकृत थे। कोई उच्च स्वरसे मधुर स्तुति-पाठ कर रहे थे तो कोई मनोहारो नृत्य और संगोतमें तन्मय थे। और कोई भेरी, मृदङ्ग, नगाड़े और घण्टा आदि बजाकर आकाशको गुन्जित कर रहे थे।
इन देवोंके अतिरिक्त धी, ह्री. कीर्ति, सिद्धि, निस्वेदता, निर्जरा, वृद्धि बुद्धि, अशल्यता, सुविभवा, बोधि, समाधि, प्रभा, शान्ति, निर्मलता, प्रणोति अजिता, निर्मोहिता, भावना, तुष्टि, पुष्टि. अमूढ़दृष्टि, सुकला, स्वात्मोपलब्धि, नि:शङ्का, कान्ति, मेधा, विरति, मति, धृति, क्षान्ति, अनुकम्पा इत्यादि देवियाँ भो-जो सुन्दर भुज-लताओं और चन्द्र-तुल्य मुखोंसे अलंकृत थीं, विचित्र और विविध मरिणमय हारोंसे जिनके वक्षःस्थल सुशोभित थे-जिनराज के विवाहमें मङ्गल-गीत गाने के लिए आ पहुंची।
तदनन्तर भगवान् जिनेन्द्र मुक्ति-धीके साथ मनोरथरूपी हाथीपर आरूढ़ हो गये। उस समय देवताओंने पुष्पवृष्टि की और इन्द्रने उनके सामने नृत्य किया। दया प्रादि देवियोंने भगवानको दिव्य आभरण पहिनाये और वागीश्वरो मङ्गल-गान गाने लगी। शेष देवोंने शङ्ख, मृदङ्ग, भेरी और नगाड़े बजाये।
इस अवसरपर अनन्त केवलज्ञानरूपी दीपकोंके तेजसे जिनराजको वरयात्रा अत्यन्त अनुपम मालूम हो रही थी। * २ एवंविधो यः परमेश्वरोऽसौ
चतुणिकायाऽमरवन्धमानः । पुण्याजनागानसुगीयमानो
भामण्डलेन प्रतिभासमानः ।।४३।। संस्तूयमानो मुनिमानवौघ
योश्च यश्चामरचीज्यमानः ।