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________________ १८६ } मदनपराजय सुन्दर तोरण द्वारोंसे अभिराम था । इसके अतिरिक्त भवन, चैत्यालय, कल्पवृक्ष, नाटयशाला, द्वादश सभाओं और गोपुरोंसे रमणीय सभामण्डप बारह योजनके विस्तारमें तैयार कर दिया गया । इस समवशरण में इन्द्र आदिक समस्त देव, विद्याधर, मनुष्य, उरम, किन्नर, गन्धर्व, दिपति, फणीन्द्र, चक्रवर्ती और यक्ष आदिक सब पाकर उपस्थित हो गये। इसके पश्चात् प्रास्त्रबोंने कर्मधनुषको-जो यमराजके भवन में रक्खा हुआ था, कृष्ण, नील, कापोत-दुष्ट लेश्यामय बोसे चित्रित था, बीच में मोहरूपी तांतसे बँधा था और पाशारूप डोरीसे अलंकृत या-लाकर समस्त देवताओंके सामने रख दिया । प्रास्रवोंने कर्मधनुषको लाकर रक्खा ही था इतने में रमरणीय रूपवती, शुद्ध स्फटिक शरोरवालो, रत्नत्रयीरूप रेखामोंसे अलंकृत कण्ठवाली, पूर्ण चन्द्रमुखी, नील कमलके समान सुन्दर नेत्रबाली मुक्ति-लक्ष्मी भी हाथमें तत्वरूपो वरमाला लेकर उपस्थित हो गयी। सबको उपस्थित देखकर इन्द्र कहने लगा--वीरो, पाप सिद्धसेन महाराजका सन्देश सुन लीजिए । उनका सन्देश है कि जो इस विशाल कर्मधनुषको बींचकर उसका मन करेगा वही मुक्ति-कन्याका वर समझा जायगा। इन्द्रकी घोषणा सभीने लूनी, परन्तु उसे सुनकर सब एकदूसरेका मुंह देखने लगे। कोई भी धनुष तोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ । इतने में अत्यन्त मनोहर, शान्तमूर्ति, सर्वज्ञ, समस्त तत्वोंके साक्षातकर्ता, दिगम्बर, पुण्यमूर्ति, संसारके उद्धारक, अनन्त शक्तिशाली पांच कल्याणकों से अलंकृत, प्राताम्रनेत्र, कमलपारिण, पाप-मल
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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