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________________ १६८ ] मदनपराजय चाहिए । हे जिनराज, यदि इस पद्धतिका आप भी अवलम्ब ले टो कोई आश्चर्य नहीं है । हे नाथ, हमारे पतिने आपको महान् अपराध किया है। फिर भी आप उन्हें मृत्युदण्ड न दीजिए; क्योंकि इस प्रकारले क्षीणशक्ति प्राणनाथको मारने में आपका क्या पौरुष है ? और ओ उपकारियोंके प्रति सौजन्य दिखलाता है उसके सौजन्य से क्या लाभ ? वास्तविक सौजन्य तो उसका है, जो अपकारियोंके प्रति सद्व्यवहार करता है । फिर भगवन्, हम लोगोंने इन्हें अनेक प्रकारसे समझाया भी था, लेकिन इन्हों हुआ ! सीर यही कारण है कि यह अपने कर्मोंका इस प्रकारसे फल भोग रहे हैं। फिर भी देव, आपको तो रक्षा ही करनी है । रति और प्रीतिकी जिनराजने यह प्रार्थना सुनी और कहने लगे – आप इस प्रकारसे अधिक निवेदन क्यों कर रही हैं ? यदि यह पापारमा देशत्याग कर दे तो में इसे नहीं मारूंगा । जिनराजको बात सुनकर रति और प्रीति कहने लगी- देव, हमें आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। लेकिन आप कुछ मर्यादा का निर्देश तो कर दीजिए। यह सुनकर जिनराज हँसकर कहने लगेयदि यह बात है तो कामको हमारे देशकी सीमाका उल्लंघन नहीं करना चाहिए । — रति प्रीति फिरसे कहने लगी- देव, आप कृपाकर अपने देशकी सीमा बतला दीजिए, फिर उसका उल्लंघन न होगा । रति प्रीतिकी बात सुनकर जिनराजने दर्शनवीर आदिको बुलाकर कहा - धरे दर्शनवीर, मदनको देशपट्ट देने के लिए अपने
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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