________________
लघुविद्यानुवाद
ह - शान्ति पौष्टिक और माङ्गलिक कार्यो का उत्पादक, साधन के लिए परमोपयोगी स्वतन्त्र और सहयोगापेक्षो, लक्ष्मो की उत्पत्ति में साधक, सन्तान प्राप्ति के लिए अनुस्वार युक्त होने पर जाप मे सहायक, आकाश तत्व युक्त कर्म नाशक सभा प्रकार के बीजो का जनक ।
मन्त्र निर्माण के लिये निम्नांकित बीजाक्षरों की आवश्यकता
ॐ ह्राह्री वपट् । सवौषट् । घेघे 1
होते है ।
ह्री
श्री.
ह
बीजाक्षरों की उत्पत्ति
बीजाक्षरो की उत्पत्ति णमोकार मन्त्र से हुई है । कारण उदभूत है । इन सब मे प्रधान "ॐ" बीज है । यह ग्रात्म वाचक है, काम बीज और भाव बोज मानते है । प्रणव वाचक पच परमेष्ठी मन्त्रो का सार तत्त्व है ।
श्री.............
می
.
ह्रस्वी क्ष्वी हा हस क्ली ब्लू द्राद्री द्र् द्र क्ष्वी श्री क्ली अर्ह अ फट् । ठ. ख झल्व्यू व व य ऋ त थ प ग्रादि बीजाक्षर
ठ.
....कीर्त्ति वाचक
........ कल्याण
शान्ति
मंगल
".
77
17
सुख
11
'विद्वेष शेष वाचक
ह
यक्ष - यक्षणियो के नाम
मन्त्र शास्त्र के वीजो का विवेचन बताया है कि
लृ व ल उ ऊ त ट द ड ए ऐ लथ ध ओ ओ अ अ प
अ आ ऋ ह् श य क ख ग घ ड इई ॠ च छ ज झ ञक्ष र थ
द ध न स फ ब भ म
सर्व मातृका ध्वनि इसी मंत्र से मूल भूत है । इसका तेजो बीज वाचक होने से ' ॐ" समस्त
प्रौ प्री........ क्ली
सर्व तीर्थकरो के नाम क्ष्वी
३७
स्तम्भन वाचक लक्ष्मी प्राप्ति वाचक मंगलवाचक
- योग वाचक
कीत्ति और प्रोति वाचक |
करने पर आचार्य ने उनके रूपो का निरूपण करते हुये
यह वर्ण वायु ज्ञक है । यह व अग्नि तत्व सजक है । यह वर्णं पृथ्वी तत्त्र सजक है । यह वर्ण जल तत्व सज्ञक है । यह वर आकाश तत्व सज्ञक है ।