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________________ लघुविद्यानुवाद २७ आभरण से सहित, दो भुजाप्रो वाला, कमल, पास के आयुध वाला, शुभ गन्ध से सयुक्त यज्ञोपवित यज्ञोपवित को धारण करने वाला, प्रसन्न बुद्धि वाला मधुर स्वाद वाला, सौ योजन विस्तार वाला, दो गुरिणत आयाम है जिसका ऐसा 'अ' कार का लक्षण है । म -त्रिकोण आसन वाला, पीले वस्त्र वाला, कुम्कुम के समान गन्ध वाला, धूम्र वर्ण वाला, कठोर स्वर वाला, निष्ठुर दृष्टि वाला, खारा स्वाद से सयुक्त, दो भुजाओ वाला, शूल का आयुध धारण करने वाला, निष्ठुर गति वाला, अशोभन आकृति वाला, नपुसक, शुभ कर्म है कार्य जिसका । ऐया 'अ' कार का लक्षण है । क -चतुरस्रासन, चतुरादत्त भवाहन, पीले वर्ण का सुगन्ध माल्यादि लेपन सहित स्थिर गति वाला, प्रसन्न दृष्टि वाला, दो भुजा वाला, वज्र मूसल के आयुध सहित, जटा-मुकूट धारी सर्वाभरण से भषित, हजार योजन विस्तार वाला दस हजार योजन का उत्सेध पूल्लिग, क्षत्रिय, इन्द्रादि देवता का स्तम्भन करने वाला, शान्तिक, पौष्टिक वश्याकर्षण कर्म का नाश करने वाला। ऐसा 'क' कार का लक्षण हे। ख –पिगल वाहन, मयूर के कण्ठ के समान वर्ण वाला, दो भुजा वाला, तोमर, शक्ति के पायध से सहित, सुन्दर यज्ञोपवित को धारण करने वाला, सुस्वर वाला, तीस योजन विस्तार वाला, आकाश मे गमन करने वाला, भत्रिय, सुगन्ध माल्यादि लेपन से सहित, आग्नेय पुराकपन, चिन्तित मनोरथ की सिद्धि करने वाला, अणिमादि दैवत, पुल्लिग। ऐसा 'ख' कार का लक्षण है। ग -हस का वाहन, पद्मासन मारिणक्याभरण से सहित, इगिलीक वर्ण वाला, श्वेत वस्त्र वाला, सुगन्ध माल्यादि लेपन से सहित, कुम्कुम चन्दनादिक है प्रिय जिसको. क्षत्रिय, पुल्लिग, सर्व शान्ति करने वाला, सौ योजन विस्तार वाला, सर्वाभरण भूषित दो भुजा से सहित, फल और पास को धारण करने वाला, यक्षादि देवता, अमृत स्वाद वाला, प्रसन्न दृष्टि वाला। ऐसा 'ग' कार का लक्षण है। घ'-ऊँट का वाहन, उल्लू का प्रासन, दो भुजा, वज्र, गदा, आयुध, धूम्र वर्ण, हजार योजन विस्तीर्ण हस के समान स्वर वाला, कठोर, गन्ध वाला, खारा स्वाद वाला, महाबलवान, उच्चाटन, छेदन, मोहन, स्तम्भनकारी पचाशत योजन विस्तिण, नपसक, रौद्र शक्ति वाला, क्षत्रिय, सर्व शान्तिकर महावीर्य को धारण करने वाले देवता। ऐसा 'घ' कार का लक्षण है। ___ड :-सासन, दुष्ट स्वर वाला, दुर्दष्टि, दुर्गन्ध, दुराचारी, कोटी योजन विस्तिर्ण, हजार योजन उत्सेध, शासन को करने वाला, रात्रि प्रिय, छ: भुजा वाला, मुशल, गदा, शक्ति मुष्टि, भु शुडि, परसा के प्रायुध को धारण करने वाला, नपुसक यमादि देवत। ऐसा 'ड' कार का लक्षण है।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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